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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर. ऋपेमंत्रकृतास्तोमैः कश्यपोदर्धयन् गिरः॥ जो करते है वेद ब्रह्माके मुखसे नुत्पन्न हूये है तिसका तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण जो है वे ब्रह्माका मुख है इसवास्ते जो कुब ब्राह्मणोंने कहा सो ब्रह्माके मुखनें कहा. शौनक ऋषिनें जब वेदांका अनुक्रम लिखा तब उसने ऐसा ठहराद करा वेद मंत्रमें जिस पदार्थका नाम आवे सो तिस मंत्रका देवता इस वास्ते कितनेक मंत्रोका घास देवता ठहराया. कितनेक मंत्रोका मेंमक देवता हुआ. इसी तरें अग्नि, मरुत, इं, वरुपा, सूर्य, प्रजापति धुरीलोचन, धनुर्धर नान्दीमुख, पुरुर्वाश्व इत्यादिक अनेक देवते ठहराये तिनकी नक्ति, यज्ञ और होमहारा करनी ठहराई है. जिस ऋपिने जो मंत्र बनाया सोइ तिस मंत्रका ऋषि ठहराया. और जैनमतवाले जिस तरें वेदोंकी नुत्पत्ति मानते है सो जैनतत्वादर्श नाम पुस्तकमें लिखी है. परंतु यहांतो जिस तरेंसें ब्राह्मण लोक वेदोकी नत्पत्ति मानते है और जैसा हमने निगमप्रकाशादि पुस्तकों में लिखा देखा है तैसें ही लिखेगे. जैसे गीतामें लिखा है. ___“ऋषिनिर्बदुधा गीतं ठंदोन्निर्विविधैः पृथक” । अनेक उदसें ऋषियोंने गायन करा और ऋषि ईश्वर के मुख है सो नारतमें लिखा है. “ब्रह्म वक्त्रं नुजौ कत्रं कृत्स्नमुरूदरं विशः पादौ यस्याश्रिताः शूशस्तस्मै वर्णात्मने नमः " अर्थ-ब्राह्मण जिसका मुख है. क्षत्रिय तुजा है. वैश्य उरुहै और जिसका पांलं शाश् है एसा चार वर्णरूप विष्णुसे नमस्कार है. भीष्मस्तवराज ६८ इस वास्ते वेदमंत्रोके कर्ता झषि है वे सर्व मंत्र व्यासजीने एकत्र करके चार वेदकी संहिता बांधी और अपने जो शिष्य थे तिनमेंसें चार जणांको एकैक संहिता वाट दिनी तिनके नाम. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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