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श्रज्ञानतिमिरजास्कर.
क्त प्रतिदर्ता १३ को || श्येन वक्ष नाता ११ को पुरोहित को पासा सांस अध्वर्यु १ को दाहिना उपगाताकों । दाहिना प्रंस अर्थात् खन्ना प्रतिप्रस्थाताको दाहिना कटिका विभाग रथ्या स्त्री ब्राह्मणो वरसक्थं ब्राह्मण वंसिकों. नरु पोताको दाहिनी श्रोणी होताकों प्रवर सकू मैत्रावरुणकों नरु प्रष्टावाकको दक्षिण वाद नेष्टाकों इत्यादि पशुके अंग मांसका विभाग करके बांटना, ऐतरेय गोपथानुसार ॥ यज्ञपशुकों देवता स्वर्गमें ले जाते है तिस कदनेकी यह श्रुति नीचे लिखी है ।
४ पशुर्वे नीयमानः समृत्युं प्रापश्यत् स देवान्नान्वकाम यतैतुं तं देवा अब्रुवन्नेहि स्वर्ग वै त्वा लोकं गमयि प्याम इति ॥ ऐतरेय ब्राह्मण पंचिका २ खंड ६ छछेमें
नावार्थ - यज्ञ में आल पशु मृत्यु देखता है. मृत्युसें देताकुं देखता है देवता पशुसें कहता है कि, श्रम तुजकुं स्वर्गमें ले जाएँगी.
पशुको फामके तिसके अंग काढनें तिसके कथन करमेवाली श्रुति नीचे लिखी जाती है:
५ अंतरेवोष्माणं वारयध्वादिति पशुष्वेव तत्प्राणान्दधाति श्येनमस्य वक्षः कृणुतात् प्रशसा बाहू शला दोषणी कश्यपेवांसाऽछिद्रे श्रोणी कवषोरू, स्त्रेकपर्णाऽष्टीवंता, षड् विंशतिरस्य वक्रयस्ता अनुष्ठयोच्यावयताद्, गात्रं गात्रम स्यानूनं ॥ ऐतरेय ब्राह्मण पंचिका २ खंड ६ ॥
अर्थ-वाती मेंसे इन सरीखा मांसखंग काढना और कोदोवा की सरीखा पीवले दोनों पगोमें दोटुकमे मांस के काढने और प्रागेके दोनो पग में तीर सरीखे दोटुकमे मांस के काढने ओर ख
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