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________________ ३४ अज्ञानतिमिरजास्कर. जी जूठ है, क्योंकि जब शतपथादि ईश्वरोक्तही नहीं है तो तिनका प्रमाण जूठा है. और शतपथ शब्दका जे कर सूवा अक्षरार्थ करी तो सौ रस्ते ऐसा होता है. जेकर इस अर्थानुसार समजीए तो किसी धूर्तने अपने शास्त्रकी रक्षा वास्ते सौ रस्ते पर अर्थ हो सके ऐसा ग्रंथ रचा है. शुक्ल यजुर्वेद शतपथ शुक्ल यजुर्वेदका चौदह प्रध्यायरूप ब्राह्मण कोने बनाया है है और शुक्ल यजुर्वेद याज्ञवल्क्यने बनाया है. जब वेद ईश्वरोक्त नही तो शतपथ ब्राह्मणका प्रमाण क्योंकर मान्य होवे तथा शतपथ ब्राह्मण में ऐसा नही लिखा है कि ऋग्वेदादिककी अमुक अमुक श्रुतियोंमें जो प्रग्नि, वायु, इंशदि शब्द है तिनका वाच्यार्थ ईश्वर है. इन शब्दांका पूर्व जाप्यकारीने तो वाव्यार्थ जौतिक अनिवाय्वादिक कहे है ऐसी जूठी कल्पनाके अर्थ आजही नवे नही कल्पन करने लगे है. किंतु प्रतीतकाल में जब मीमांसाके वार्तिककार जट्टपाद कुमारिलको वादियोंने सताया कि तेरे देवता बडे कुकर्मी है, उसने यह जवाब दिया कि लोगों ने जो पोथीयोंमें लिख लिया है कि प्रजापति अर्थात् ब्रह्मा अपनी बेटी फसा अर्थात् विषय जोग करता जया, खराब हुत्रा, और इंयाके साथ कुकर्म करा; यह कहना बिलकुल जून है, क्योंकि प्रजापति नाम सूर्यका है, और उसकी बेटी नवा है, वेदों में जहां कहा है कि प्रजापति अपनी बेटी मैथुन सेवन करता नया तहां जावार्थ ऐसा है कि सूर्य उपाके पीछे चलता है. इसीतरें इंश्नाम सूर्यका है, और ग्रहल्या रात्रिका नाम है. जहां कही aria कहा है कि ने अहल्याकों खराब करा, मतलब इतनाही है कि सूर्यनें रात्रिकों खराब करा, सूर्यके नगनेंसें रात्रिकी खराबी होती है. तथा कुमारिलः " प्रजापतिस्तावन्प्रजापालनाधिकारात् श्रादित्य एवोच्यते स चारुणोदयवेलायामुपसमुद्यन्नन्येति सा तदाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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