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________________ २२ अज्ञानतिमिरजास्कर. मतकी बाबत जबरदस्ती नहीं करी बलकि जैन राजायोंका राज्य प्रजाके बहुत सुधारेंमें था. इतिहास तिमिरनाशकके के स्थानों में इस बातका जिकर लिखा है. दूसरे मतवालोंकी जबरदस्ती कै जगों लिखी है. हाल दिल्ली में जो जैनीयोंकी रथयात्रा ब्राह्मण वगेरोंनें नहीं निकलने दीथी सो सरकार अंग्रेजीके दुकमसें संवत १९३५ में निकली, यह बात प्रसिद्ध है. तथा हथरस, रेवाडी, खुरजे प्रमुख शहरों में ब्राह्मण प्रमुख श्रन्यमतवालोंने जैनीयों उपर थोमी जुलमी करीथी ? यहतो अंग्रेजी राज्यकाही तेज है, जो जैनी अपने ध का त्सव करते है और सुखसें काल व्यतीत करते है. फेर ब्राह्मणों अपने आपकों श्रास्तिक और जैनीयोंकों नास्तिक कहते है यह बने आश्वर्यकी बात है. जैनोंके मतमें ब्राह्मणोंका पाखंम चलता नहीं इस बास्ते जैनोंकों नास्तिक कहते है .. पाराशर स्मृतिका अनादर. यद्यपि इस काल में जैनलोकोंमेंनी ब्राह्मणोंकी वासना सैं अनेक रूढीके पाखं चल रहे है परंतु जैनोंके शास्त्रोंमें बहुत जगतरूढीके पाखंड नहीं है. सिवाय अपने इष्ट अईतके और किसी मिथ्यादृष्टि देवकी भक्ति करनी नहीं लिखी है तथा अतीत कालमें पांचकर्म चलतेथे कलियुग में हिं- “ श्रग्निहोत्रं गवालंनं संन्यासं पलपैतृकं । देवराच्च साका निषेध. सुतोत्पत्तिं कलौ पंच विवर्जयेत् " ॥ १ ॥ यह कथन पाराशर ऋषिका है. अर्थ:- अग्रिहोत्र १ यज्ञादिकमें गायका वध २ संन्यास ३ श्रामें मांस क्षण ४ देवरसें पुत्र समुत्पन्न करना, अर्थात् देवरकों पति करना । यह पांचका कलियुग में त्याग करना. इस ऋषिने हिंसाका बहुत निषेध करा है तोजी प्रज्ञ जन हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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