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अज्ञानतिमिरनास्कर.
१॥ उसरी यह बात है कि ब्राह्मणोंकी शौकने बहुत होगई है. लोग अखाडेके बाबांको, मंदिरोकें साधु गुरुके शिख लाइ रामसिंहके कूके शिष्य नराईयोकों, और अनेक मत और वेषवालोंकों जिमाते है, परंतु ब्राह्मणोंकों नही. कितनेक ब्राह्मणोंका नाम पम्मे
और पोप कहने लग गए है, यह ब्राह्मणोंकों बहुत सुखदायक है. इनकी इसमें बमी हानि है. ब्राह्मणोकी तथा ब्राह्मणोंकों ग्रहण गिननेकी रीती आती है, कुटिलता. तिसकों कालपर्व उदराके लाखों रुपक हजारों वघाँसें कमाते खाते है. ब्राह्मण लोग अपने काममें बसे दुश्यार है क्योंकि किसीका बाप मरजाता है, तब तिसका बेटा शय्या लोटादिक अनेक वस्तु ब्राह्मणोंकों देता है और ऐसे मनमें मानता है कि जो कुछ ब्राह्मणोंकों देनंगा सो सर्व स्वर्गमें मेरे पिताकों मिलता है. इधर दीया और नधर मरनेवालोंकों पहुंचा और तुरत जमा खरच हो जाता है. ए ग्रंथकादुस- इस लिखनेका यह प्रयोजन है कि जब बहुत धूर्त
रा प्रयोजन. ज्ञानी और जबरदस्त होतेहै और प्रतिपक्षी असमर्थ कमसमजवाले होते है तब कोई अपने मतलबकों नूलता नहीं. कोई सत्यमार्गी परमेश्वरका जक्तही स्वार्थत्यागी परमार्थ संपादक होता है. पाखंडी बहुत होते है इस बास्ते अबनी पाखंमी लोगोंकों नचित है कि अपना लालच गेम देवें और लोगोंकों ब्रमजालमें न गेरे, सत्यविद्याका पठनपाठन करे, लोगोंकों अबी बुद्धि देवें, हिंसक और जूठे शास्त्रोंकों गेम देवें, कमा करके खावे, उल कपट न करें, सर्व जीवोंपर सामान्यबुदि रखे, दुःखीकों साहाज देवे, काली कंकाली, नैरव प्रमुख हिंसक और जूठे देवोंकों मानना गेम देवें, सत्य शील संतोषसें चले तो अवन्नी इस देशके लोगोंके बास्ते अच्छा है.
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