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ឌុចថា
अज्ञानतिमिरनास्कर योग्य जानके समुदेश करावे १ पूर्व दीया आलावा शिष्यको आगया जानके नवीन श्राखावा-पाठ देवे ३ पूर्वापर अर्थको अवि. रोधीपणेसे कहे ४ मति संपदा चार प्रकारे, अक्ग्रह १ ईहा २ अपाय ३ धारणा ४ संयुक्त होवे. प्रयोगमति संपद चार प्रकारे, यहां प्रयोगनाम वादमुशका है सो अपनी सामर्थ जानके वादीसे वाद करे १ पुरुषकों जानें क्या यह बौछादि है । केत्र परिझानं क्या यह क्षेत्र माया बहुल है, साधुयोंका नक्तिवान् है वा नहि ३ वस्तु ज्ञानं क्या यह राजा, मंत्री सन्नानक है वा अन्नक है ४ संग्रह स्वीकरणंतिस विषे ज्ञान सो आठमी संपदसो चार प्रकारे. पीठ फलकादि विषया १ बालादि शिष्य योग्य क्षेत्र विषया श् यथावसरमें स्वाध्यायादि विषया ३ यथोचित विनयादि विषया ४ विनय चार प्रकारे आचार विनय १ श्रुत विनय २ विकेपणा विनय ३ दोष निर्घातन विनय । तिनमें आचार विनय. संयम १ तप गच्छ ३ एकल विहार ४ विषये चार प्रकारकी समाचारी स्वरूप जाने. तिनमे पृथ्विकाय संयादि सत्तरे नेद संयमे आप करे, अन्यासे करावे, डिगतेकों संयममे स्थिर करे, संयममे यतन करने वालेकी उपवृंहणा करे. यह संयम समाचारी है। पदादिकमें आप चतुर्थादि तप करे, अन्योंसे करावे. यह समाचारी है २ पडि लेहणादिमे, बाल ग्लानादिककी वैयावृत्तिमें डिगतकों गच्छमें प्रवविना श्नमे आप स्वयमेव नद्यम करे. यह गच्छ समाचारी है ३ एकल विहार प्रतिमा अाप अंगीकार करे अन्योंको अंगीकार करावे. यह एकल विहार समाचारी ४ श्रुत विनयके चार नेद है. सूत्र पढाना १ अर्थ सुनावना हित, योग्यता अनुसारे वांचना देनी ३ निःशेष वाचना निःशेष समाप्तितक वाचना देनी ४ विके पणा विनयके चार नेद है. मिथ्यात्व विक्षेपणा मिथ्या दृष्टिकों
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