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द्वितीयखम:
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हार, ज्ञान क्रियादि, नानां नयोके मतके प्रकाशक सिद्धांत गंभीरजाव वाले महा मतिवालोके जानने योग्य जिनका अभिप्राय है, ऐसे सूत्र है. तिन पूर्वोक्त सूत्रांका विषय विभाग, इस सूत्रका यह विषय है; ऐसे न जानता हुआ ज्ञानावरण कर्मके उदयसे मतिमंदा होता है; तब वो जीव अपनेको और नपासकको असत् - ग्रह, सत् बोध उत्पन्न करता है. जमालीवत्. ऐसे मूढ अर्थी विनीतको, गीतार्थ संविज्ञ गुरु पूज्य, परोपकार कर में रसिक, दयासे विचारते है; यह प्राणी दुर्गतिमें न जावे. ऐसी अनुग्रह बुfs करके प्रेरे हुए प्रतिबोध करते है. आगमोक्त युक्तिकरके जिसको प्रतिबोधके योग्य जानते है. प्रयोग्यकोतो सर्वज्ञनी प्रतिबोध योग्य मुनि सुनंदनराजऋषिके सदृश सरलभावसें होता है. इति कथन करा प्रज्ञापनीयत्वनामा जावसाधुका तिसरा लिंग. fe करके प्रेरे हुए प्रतिबोध करते है, आगमोक्त युक्तिकरके जिसको प्रतिबोधके योग्य जानते है. प्रयोग्यकोतो सर्वज्ञनी प्रतिबोध कर सामर्थ्य नहि है. सोनी प्रतिबोध योग्य मुनि सुनंदनराजरुषिके सह सरनावसे होता है. इति कथन करा प्रज्ञापनीयत्व नामा जाव साधुका तीसरा लिंग.
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संप्रति क्रियाले अप्रमाद ऐसा चौया लिंग लिखते है, जली जो दोवे गति सो कहिये सुगति-मुक्ति तिसके वास्ते चारित्रयति धर्म है. तक्तं
विरहिततरिकांमा बाडुर्दमेः प्रचएम, कथमपि जलराशि घीधना लंघयन्ति । नतु कथमपि सिद्धिः साध्यते शीलहीनैर्दृढयत इति धर्मे चित्तमेवं विदित्वा ॥ १ ॥
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अर्थ- बुद्धिरूप धनवाले झांझबिना बादु दंमसे समुझको तर जाते है. शीतदीन पुरुषसें सिद्धि साध्य नहि होती है ऐसा
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