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________________ हितीयखंग. शए देनेवाले, संविज्ञ होनेसे पूर्वसूरि चिरंतन मुनियोके नायक जे होगये है तिनोनें निषेध नहि करा है; जो आचरित आचरण सर्व धर्मीलोक जिस व्यवहारको मानते है तिसको विशिष्ट श्रुत अवधि ज्ञानादि रहित कौन निषेध करे ? पूर्व पूर्वतर नत्तमा चार्योकी आशातनासे डरनेवाला अपितु कोइ नहि करे, बहुल कर्मीकों वर्ज के ते पूर्वोक्त गीतार्थो ऐसे विचारते है. जाज्वलमान अग्निमें प्रवेश करनेवालेसंनी अधिक साहस यह है. नत्सूत्र प्ररूपणा, सूत्र निरपेक्ष देशना, कटुक विपाक, दारुण, खोटे फलकी देनेवाली, ऐसे जानते हुएनी देते है. मरीचिवत्. मरीचि एक उर्जाषित वचनसें खरूप समुको प्राप्त हुआ एक कोटा कोटि सागर प्रमाण संसारमें भ्रमण करता हुआ; जो नत्सूत्र आचरण करे सो जीव चीकणे कर्मका बंध करते है. संसारकी वृद्धि और माया मृषा करते है तथा जो जीव नन्मार्गका उपदेश करे और सन्मार्गका नाश करे सो गूढ ह्वदयवाला कपटी होवे, धूर्ताचारी होवे, शब्य संयुक्त होवे, सो जीव तिर्यंच गतिका आयुबंध करता है. नन्मार्गका उपदेश देने से नगवंतके कथन करे चारित्रका नाश कवता है. ऐसे सम्यग् दर्शनसे ऋष्ठकों देखनामी योग्य नहि है. इत्यादि आगम वचन सुणकेन्नी स्व-अप ने आग्रहरूप ग्रह करी ग्रस्तचित्तवाला जो नत्सूत्र कहता है क्योंकि जिसका नरला परला कांदा नहि है ऐसे संसार समुश्में महा दुख अंगीकार करणेसें. प्रश्न. क्या शास्त्रको जानकेनो को अन्यथा प्ररूपणा करता है. ? उत्तर-करता है सोश दिखाते है. देखने में आते है-उषम कालमें वक्रजम बहुत साहसिक जीव लवरूप नयानक संसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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