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द्वितीयखम.
ए बाह्यप्रवृति आप करणी, और बालजीवोंकों नपदेशनी इसी बाह्य क्रियाका करणा.
मध्यम बुद्धिको र्यासमित्यादि पांच समिति, तीन गुप्ति यह अष्ट प्रवचन मातारूप मोक्षार्थीने कदापि नहि गेमके. इन अष्ट प्रवचनके प्रधान होनेसे साधु मुनिकों संसारका जय नहि होता है अत्यंत हितकारक फल होवे. गुरुकी आज्ञामें रहणा, गुरुका बहुमान करणा, परम गुरु होनेका यह बीज है. तिस्से मोद होता है. इत्यादि सावृत्ति मध्यम बुड़िकों सदा कहनी. प्रागमका परम तत्त्व बुडको कहना, नगवंतका वचन आराधना धर्म है, तिसका न मानना अधर्म है, यही सर्व रहस्य गुह्य सर्व सुधर्मका है इत्यादि. अथवा पारिणामिक, अपारिणामिक, अति पारिणामिक नेदसें तीन प्रकार के पात्र है. इत्यादि पात्र स्वरूप जान करके श्रावान् तिस पात्रको अनुग्रह हेतु नपगारी शुन्न परिणामाकी वृद्धिकारक आगमोक्त कथन करे, नत्सूत्र मोक्षके वैरी नूतको वर्जे, जैसे श्रेणिक राजा प्रति महा निग्रंथने उपदेश करा.
प्रश्न. देशना नाम धर्मोपदेशका है, सो नाव साधुकों सर्व जीवांको विशेष रहित करनी चाहिये. पात्र अपात्रका विचार काहेंकों करणा चाहिये ?
__ उत्तर-पूर्वोक्त कहना ठीक नहि. जैसे अन्य जीवांको बुध मीसरी पथ्य और स्वादनीय है तैसें संनिपात रोगवालेकों देनेसे गुण नहि होता है. इसी वास्ते निषेध करते है, कायादि कडवी वस्तु देते है; इस वातमें देनेवालेका नाव विषम नहि कहा जाता है; तैसें देशनामेंनी योग्य अयोग्यका विचार क. रना ठीक है. सर्वदान पात्रके तां दीया कल्याणफलका जनक है. पात्र कहते है. नचित ग्राहक जीवादि पदार्थका जाननेवाला
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