________________
अज्ञानतिमिरनास्कर. ऐसा अप्रेय प्रस्ताव परमेश्वरके वचनकी मुश है. और जोत व्यवहार ऐसा चलता है. षट्काय संयम, दशवैकालिकका चौथा षट्जीवनिकाय अध्ययन सूत्रार्थसें जाणे तद पीछे उपस्थापन करते थे. तथा प्रथम पिंमेषणा पठन करके पीछे उत्तर अध्ययन पठन करते थे. संप्रति कालमें प्रथम उत्तराध्ययन पठन करके पीछे अचारांग पढते है. पूर्वकालमें कल्पवृक्ष लोकांके शरीर स्थिति निर्वहके हेतु होतेथे, संप्रतिकालमें आंबकरीर प्रमुख निर्वाह होता है. पूर्वकालमें अतुल बल धवल वृषम होतेथे, संतकालमें सामान्य बैलोंसे व्यवहार चलाता है. गोपा और कर्षका गोपाल और केती करनेवाले चक्रवर्तीके गृहपति रत्नकी तरें जिस दिन बोवे तिसही दिनमें धान्यके निष्पादक थे. संप्रति कालमें तिनके अन्नावसे योमी गौवाले गोपाल और जाट कुणबीओसें काम च. लता है. तथा पूर्वकालमें योधा सहस्र योधादिक होते थे, संप्रति कालमें अल्प बल पराक्रमवालेजी राजे शत्रुओकों जीतके राज्य पालन करते है. पूर्वोक्त दष्टांतोकी तरे साधुनी जीतव्यवहारकरके संयम पाराधन करते है, यह उपनय है. तथा शोधि प्रायश्चित्त षड्मासिक प्राप्त हुएंनी जीतव्यवहारसे छादशक अर्थात् पांच नपवाल लगत मार करनेसे उमासी तपकी तरें शुदि करता है. पुष्करणीयांनी पूर्व पुष्करणीयोसें हीन है तोन्नी लोकोंकों नपका रिणी है. दाष्ट न्तिक योजना पूर्ववत् कर लेनी, इस प्रकारसे अनेक प्रकारका जीत उपलब्ध होता है. अथवा
___ "जंसव्वहान सुत्ने पमिसिई नयजीववहहेन तं सव्वंपि प. माणं चारित्त धणाण नशियंच ॥ ४ ॥” जो वस्तु सर्वथा सर्व प्रकारसे सिशंतमें निषेध नदि करी है, मैथुन सेवनवत्. उक्तंच निशीय नाण्यादौ
"नय किंचि अणुन्नायं पिडिसिई वाविजिरावरें देहिं; मो.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org