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________________ द्वितीयखं. ចុច៖ वित पात्र बंधरूप तिस्से निदा लेनेको जाना. आगममें तो मणिबंध प्रत्यासन्न पात्रबंध झोलिके दोनों अंचल मुष्टिसे धारण करणें कहे है. और आचरणांसें अब कुहणीके समीप बांधते है. तैसेंही नपग्राही तुबकके नवीन मुख जोडना तथा ईबक त्रेपनकादिके मुखमें डोरी देनी यह मुनि जनोंमें प्रसिद है. ये आचरण संप्रतिकालमें है. तथा “सिक्किगनिखिवणा पजोसवणातिहिपरावत्तो । नोयण विहियअन्नत्तएनाई विविहमन्नपि ॥ ३ ॥ टीका दवरक डोरी करके रचा हुआ नाजनाधार विशेष तिसमें रखके पात्रांको बांधना आदि शब्दसें नुक्त लेपरोगानादिसे पात्रांको लेप करणां, तथा पर्युषणादि तिथिका परावर्त करणा. पर्युषसा तिथि संवत्सरिका नाम है, तिसका परावर्त पंचमीसे चौबके दिन करणी, आदि शब्दसें चतुर्मासिक ग्रहण करणा, तिसकी तिथिका परावर्त चौमासा पूर्णमासीसे चौदसकों करणां ऐसा जो तिथ्यंतर करणा सो प्रसिद्ध है. तथा नोजन विधि जो अन्यतरें से करते है सो यतिजनोमं प्रसिद्ध है. यह सर्व व्यवहार पूर्व गीतार्थ संविज्ञोकी आचरणास संप्रतिकालमें चवता है. एवमादि ग्रहण करणेंसे षट् जीवनिकाय अध्ययन पढनेसे शिष्यकों वेदोपस्थापनीय चारित्र देते है. इत्यादि गीतार्थोकी आचरणासे विविध प्रकारका आचरित प्रमाणनून है ऐसा नव्य जीवोंकों जानने योग्य है. तथा च व्यवहार नायं “सथ्य परिन्ना बक्काय संजमो पिंम उत्तर झाए रूखे वसहे गोवे जो सोहीय पुस्करिणी ॥१॥” इस गाथाका लेश मात्र अर्थ ऐसे है. आचारांगका शस्त्रपरिज्ञाप्ययन सूत्रसे और अर्थसें जब जाणे, पढ लिया होवे तब शिष्यो महाव्रतमें नपस्थापन करना; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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