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अज्ञानतिमिरत्नांस्कर. जनादिकके प्रतिबंधसे रहित होवे, परके नुपरोधसें काम लोग नोगे है, वैश्याकी तरे गृहवास पाले.
अथ इनका स्वरूप लिखते है. प्रथम स्त्री नेदका स्वरूप लि खते है. स्त्री कुशीलता निर्दयतादि दोषांका नवन है, चल चित्त है, अन्य अन्य पुरुषकी अन्निलाषा करणेसे नरकके जानेको सीधी समक है, स्त्रीको ऐसी जानके श्रेयार्थी पुरुष स्त्रीके वशवर्ती तदधीनचारी न होवे, काष्ठश्रेष्ठीवत्. इति प्रथम नेद. - अथ इंभियनामा उसरा नेद. यहां इंघिय, श्रोत्र चकु, घ्राण, रसना, स्पर्शन, पांच नेद है. ये पांचो चंचल घोमेकी तरे दुर्गति, उर्योनि, पदकी तर्फ जीवको खेंचके ले जाते है. इस वास्ते इनको पुष्ट घोमेकी तरे शोननिक ज्ञानरूप लगाम करके वश करे, विजयकुमारवत् . इति दुसरा नेद..
अथ अर्थनामा तिसरा नेद. धनको सर्व अनर्थका मूल जाणी तिसमें लुब्ध न होवे. नक्तंच- अर्थानामर्जने दुःखं अर्जितानां च रणे। नाशे दुःखं व्यये दुःखं धीगर्यो दुःख नाजनं ॥१॥
अर्थ-व्य नपार्जन करने में सुःख है. उपार्जन पी नस. की रक्षामें दुःख है. और नाश तथा खर्च में पुःख है, च्य दुःख का पात्रज है, नसको धिक्कार है. तथा धन चित्तको खेद कर्ता है. यथा
राजा रोहति किंतु मे हुतवहो दर किमेतःनं, किं वामी अन्नविष्णवः कृतनिन्नं लास्यंत्यदो गोत्रिकाः। मोषिष्यंति च दस्यवः किमु तथा नष्टा निखातं नुवि, ध्यायन्नेवमहर्निशं धनयुतोप्यास्तेतरां दुःखितः ॥ १ ॥
मेरा धन राजा ले जायगा, क्युं अनि जालेगा, क्युं मेरा
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