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________________ हितीयखम. धिकारीओके लक्षण कहे है तो फिर एकवीश गुणांवाला कौनसे धर्मका यहां अधिकारी कहा है ? श्रावकका भेद, उत्तर—ये सर्व शास्त्रांतरके लक्षण सर्व प्राये इन एकवीस गुणांकेही अंगनूत है. इस बास्ते इन गुणांके हुए नाव श्रावक होता है. प्रभः-क्या नाव श्रावक विना अन्यन्नी श्रावक है जो ऐसे कहते हो ? उत्तर-इहां जिनागममें सर्व नाव अर्थात् पदार्थ चार प्रकारसे कहे है. “ नामस्थापनाच्यन्नावैस्तन्न्यास " इति वचनात्; सोश दिखाते है. नाम श्रावक-सचेतन, अचेतन पदार्थका " श्रावक " ऐसा करणा १ स्थापना श्रावक-चित्र पुस्तकादि गत २ व्य श्रावक-शारीर, जव्य शरीर, व्यतिरिक्त देवगुर्वादि श्रज्ञान विकल तथाविध आजीविकाके वास्ते श्रावकाकारधारक ३. और नावश्रावक-" श्रक्षालुतां श्राति श्रृणोति शासनं दानं वपेदाशु वृणोति दर्शनं । कृतत्यपुण्यानि करोति संयम, तं श्रावकं प्राहुरमी विचक्षणाः ॥ १ ॥ इत्यादि श्रावक शब्दार्थ धारी. यथाविध श्रावक नचित व्यापारमें तत्पर होवे सो रहा ग्रहण करणा, शेष तीनोको यथा कथंचित् होनेसें. प्रश्नः-आगममें अन्यथानी श्रावकोके नेद सुनते है, यउक्तं श्री स्थानांगे, - “चनविहा समणो वासगा पन्नत्ता, तं जहा अम्मापिसमा णे १ नाय समाणे २ मित्तसमाणे ३ सबत्ति समाणे ५ अथवा चनविदासमणोवासगा पन्नत्ता, तं जहा आयंसमाणे १ पमाग समाणे २ खाणुसमाणे इ खरंट समाणे ४, ये साधुओंकी - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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