SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अज्ञानतिमिरनास्कर. चंबरको विखेरे. इन पूर्वोक्त तीनो अकरोके अर्थ करी संयुक्त होवे तिसको श्रावक कहते है. और पूर्वोक्त गुणोवाली स्त्रीको श्राविका कदते है. इन चारोका समुदाय तथा कुलांके समुदायको संघ कहते है.५ क्रिया ६ धर्म ७ ज्ञान ज्ञानी ए चारों प्रसिद है. स्थविर नसको कहते है, जो धर्मसे मिगते जीवांको फिर धर्ममें स्थापन करे १७ आचार्य नप्तको कहते जो उत्रीस गुणां करी सहित होवे और सूत्रका अर्थ कहे ११ नपाध्याय नसको कहते है जो पचवीस गुणां करी सहित होवे और सूत्र पाठ मात्र शिष्योको पठन करावे १३ गणी नसको कहते है जो सर्व शास्त्रका पढा हुआ बहुश्रा होवे १३ श्न तेरांकी आशातना न करे, तेरांकी नक्ति करे, तेराको बहुमान करे, तेरांके गुणांकी स्तुति करे. ऐवं ५२ नेद पाशातना विनयके हुए है. इस तरेका विनय सर्व गुणांकां मूल वर्तते है. नक्तंच, विणओ सासणे मूलं विणओ संजओभवे । विणयाविप्पमुकस्स कओ धम्मो कउ तवो॥१॥ अर्थ-विनय जिन शासनमें मूत और विनीतही संयत होता है, विनयसे रहितको धर्म और तप दोनोद नहि. विनय किनका मूल है-सत् ज्ञान दर्शनादिकोंका. नक्तंच. विणयाउणानं नाणाउ दसणं दसणाउ चरणं ॥ चरणे हिंतो मुस्को, मुरके सुखं अणावाहं ॥ १ ॥ __ अर्थ-विनयसे ज्ञान होता है, ज्ञानसें दर्शन होता है, दर्शनसे चारित्र होता हैः चारित्रसे मुक्ति होती है और मुक्तिसे अनाबाध सुख होता है. तथा विनयसें किस क्रमसें गुण प्राप्त होता है सो लिखते है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy