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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर. दुत बुरा काम कहते है और प्रकृति पुरुषवादि होनेसे अद्वैतके विरोधी है. और गौतम अपने सूत्रोंमें मुक्तिका होना ऐसें लिखता है, तथाच गौतमका प्रश्रम सूत्र ॥ “प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजनदृष्टांतसिहांतावयवतर्कनिर्णयवादजल्पवितंडाहेत्वानासबलजातिनिग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञामानिःश्रे यसाधिगमः " ॥ १ ॥ “प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिहांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंमा, हेत्वान्नास, बल, जाति, निग्रह अने स्थान,-ए सोलापदार्थका तत्वज्ञानसे मोदकी प्राप्ति होती है." इस सूत्रका तात्पर्यार्थ यह है कि सोला पदार्थके जाननेसे मुक्ति होती है. मुक्तिमें आत्मा झानसे शून्य हो जाता है और दंतकथामें यह नी सुननेमें आया है की गौतमनें न्यायसूत्र वेदोंहिके खंडन करने वास्ते रचे है.. वेदमें गौतमाः और उपनिषदकी नाष्य टीकामें कपिल, गौतमादिमतोका खं डन. दिके मतोंका खंमनन्नी लिखा है. इससे यह सिद दुाकि कपिल, गौतमादिकोंकों वेदोंकी प्रक्रिया अगी नही लगी. तब ननोंने विलक्षण प्रक्रिया रची. वेद परत्व प्रा दाल जो ब्राह्मण वेदपाठ मुखसें पढते है वे वेदीह्मणोकी भिन्न भिनाजा. या कहे जाते है. और जो यज्ञादिक जानते है तिनको श्रोत्रिय कहते है. और जो गृहस्थके घरमें उपनयन, विवाह इत्यादि संस्कार करते है तिनको याझिक अथवा शुक्ल कहते है.जो श्रोताग्निकी सेवा करते हैं तिनको अग्निहोत्री कहते है. और जिनने यज्ञ करा होवे तिसको दीक्षित कहते है. एक शास्त्रके पढे शास्त्री और सर्व शास्त्रोंके पढेको पंमित कहते है, इत्यादि अनेक तरेंके ब्राह्मणोंके नाम है. वेदमें मुख्यधर्म यज्ञका करणां बतलाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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