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अज्ञानतिमिरनास्कर. जोमना २ गुरु आदिकको आसन देना ३ गुरु नहि बेठे तब तक नहि बेठना । गुरु आदिको छादशावर्त वंदणा करणी ५ गुरु आदिककी शुश्रूषा करणी ६ गुरु आदिकको जातेको पहुँजाने जाना ७ पास रहेकी वैयावञ्च, नक्ति, सेवा करणी ७. अनाशातना विनयके बावन नेद है सो इस तरेसे जानने. अरिहत १ सिह २ कुल ३ गच्छ ४ संघ ५ क्रिया ६ धर्म ७ झा न ज्ञानी ए आचार्य १० स्थावर ११ नपाध्याय १२ गगी १३ यह तेरा पद है. तिनमें प्रथम अरिहंत, अरि वैरी-श्रष्ट कर्म रूप, जिनोंने नाश करे है, सो अरिहंत. नक्तंच.--
__ " अह विहंपि कम्मं अरिनूयं पि होई सव्वजीवाणं। कम्म मरिहंता अरिहंता तेण वुञ्चति ॥ १ ॥ अर्थ-अष्ट प्रकारके कर्म सर्व जीवांके शत्रुनूत है तिनको जो हणे सो अरिदंत कहा जा. ता है, अथवा अरुहंत-जिनका फिर संसारमें नवरूप अंकुर नहि होता है सो अरुहंत कहे है, अथवा अरहंत-चौसठ इंशेकी पूजाके जो योग्य होवे सो अरहंत कहा जाता है, अथवा जिनके झानसे को वस्तु गनी नहि सो अरहंत है. यह तीनों पागंतर है. तथा मुक्ति में जो चढे सो आरोहंत कहा जाता है. अरिहंत फिसीका नाम नहि है. जो पूर्वोक्त अर्य करी संयुक्त होवे
और चौत्रीस अतिशय, पांत्रीस बचनातिशय और बारह गुणां करके संयुक्त होवे और अगरह दोषां करके रहित होवे सो अरिदंत कहा जाता है. ईश्वर, ब्रह्मा, शिव, शंकर शंनु, स्वयंनु, पारगत, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी इत्यादि अरिहंतहीके है परंतु पूर्वोक्त नाम जो अज्ञ लोकोने कामी, क्रोधी, विषयी, राजा, नृत्य करनेवाला, निलंज होके किरतीके आगे नाचनेवाला, वेश्यागमन करनेवाला, परस्त्री स्वस्त्री गमन करनेवाला, शरीरको राख ल..
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