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________________ {យម अज्ञानतिमिरनास्कर. है तथा इसामसीह चलनेसे थक गयानी लिखा है इस वास्ते वीयांतराय दूषणनी था. तथा दयानंद सरस्वति जो कहता है कि मनुष्य सर्वज्ञ कदापि नहि हो सकता है, इस वास्ते ईश्वरने अग्नि, वायु, सूर्य, अंगीरस ऋषियोंके मुखसे वेद कथन करवाये; यह कहना महा जूठ है, अप्रमाणिक होनेसें; तथा क्या जानने नन ऋषियोने स्वकपोलकल्पित गप्पेही मारी होवे, इस वातका गाह कौन है कि ईश्वरने ननसे कयन करवाया. क्या ईश्वर बने बनाये, लिखे लिखाये वेद ऋषियोको नहि दे शक्ता था ? हम नपर प्रमाण लिखे आये है कि देह विना सर्वव्यापी ईश्वर अन्यको प्रेरणादि कुच्छ नहि कर शक्ता है तथा अनुमान प्रमाणसेंनी सिह होता है कि देह रहित ईश्वर कर्ता नहि अक्रियत्वात्-अक्रिय होनेस, आकाशवत्. इस वास्ते अठारह दूषण रहित देहवालाही उपदेशक हो शक्ता है, सोही अहंत परमेश्वर है. . दयानंद सरस्वति जो प्रतिमाका पूजना निषेध करता है सोनी अज्ञानोदयसे क्योंकि प्रथम खंममें सप्रमाण लिख आये है कि वेद ईश्वरके कथन कर हुए नहि तब तो वेदोमें मूर्ति पूजन हुआ तो क्या दुआ, और न दुआ तोनी क्या हुआ. जब वेदही ईश्वरोक्त नहि तब दयानंदके गल्ल बजानेसे क्या है. इस वास्ते अहंत परमेश्वरही, सर्वज्ञ और सच्चे धर्मका नुपदेशक है, अन्य नहि है; जेकर कोई ऐसा कहे कि जैनीओने अच्छी अच्छी बाता अपने पुस्तकोमै अपने अर्हतोके वास्ते लिखी लिनी है तो हम कहते है कि अन्य मतांवालाको किसने रोका है जो तुम अपने अवतारो वास्ते अच्छी बाता मत लिखो; परंतु जैसा जिसका चाल चलन था तैसाही लिखनेवालोने लिखा है, क्योंकि विक्रमादित्यका बमा नाइ नर्तृहरि अपना बनाया शृंगार शतकमें लिखता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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