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हितीयखमः परमेश्वर नहि था, किंतु लोकने स्वच्छंदतासें ईश्वर कल्पन कर गेडा है. तथा श्रीरामचंजी यद्यपि परस्त्रीगामी नहि था, और अनेक शुनगुणां करी अलंकृत था. परंतु अहंत परमेश्वर नहि था, क्योंकि नार्या सीतासें नाग करता था, इस वास्ते कामसें रहित नहि पा; तथा संग्रामादि करने रागद्वेष रहितनी नहि था; राजा होनेसे अविरतिनी था; शोक, जय, रति, अरति, जुगुप्सा, हास्यादि करकेन्नी संयुक्त था; इस वास्ते अहंत परमेश्वर नहि था; यद्यपि दीदा लिया पीने श्रीरामचंजी सामान्य केवली हो गये थे परंतु तीर्थंकर नहि थे. इसी तरे श्रीकृष्णजीनी जान ले. ने. तथा इशामसीहनी पूर्वोक्त अगरह दूषणोसे रहित नहिं था, क्योंकि रंजीलमें लिखा है कि एक दिन इसामसीहको नूख लगी तब गुलरके फल खानेको गया. जब गूलरके पास गये तब गुलरमै फल एकत्नी न मिला, तब श्खामसीहनें गुलरको शाप दिया, जिस्से गुलर मूक गया. इस लिखनेसें यह मालुम होता है कि यसामसीहको ज्ञान नहि था, नहितो फल रहित गुलरके पास फल खानेकु न जाते, तथा गुलरको शाप देनेसे वेपन्नी सिह दुआ, तथा जगतमें करामत दिखलाके लोगोका अपने मतमें लाता था, जेकर समर्थ होता तो अपनी शक्तिसें लोकोका अंतःकरण शुइ नहि कर शकता था ? तथा नक्तजनोके पापके बदले शूली चढा. क्या विना शूली चढे नक्तोका पाप नहि दूर कर शकता था ? तथा पाप करा अन्यने और फल नोग्या अन्यनें यह असंन्नव है; तथा जिलमें कहता है, जो पाप करते है तिसको में नसकी सात पेढी तक उस पापका फल देता हूं, यह अन्याय है क्योंकि करा अन्यने और फल अन्यको देना, तथा इसामसीह चौद रहा कि सर्व लोक मेरे पर इमान लावे परंतु लोक लाय नहि. इससेंनी अज्ञान, असामर्थ्यता सिह होती
या शूजी चले और फल लोग्न है ति
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