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द्वितीयखम. पक्षपात गेडके विचारेगा तो यथार्थ मालुम हो जायगा, परंतु जो वेद विगेरे शास्त्रोका हठ करेगा तिसकों सत्यमार्ग कदापि प्राप्त न होवेगा क्योंकि वेद विगेरे बहुत शास्र जो हालमें प्रचलित है वे सर्व युक्ति प्रमाणसे बाधित है, इनका स्वरूप प्रथम खंममें किंचित् मात्र लिख आये है, और अन्य लोगोंको जो असत् शास्त्रका आग्रह है सो जैनमतके न जाननेस है; क्योंकि हिंदुस्तानी, करानी, मुसलमान विगरे सर्व लोक अंग्रेजी, फारसी प्रमुख अनेक तरेंकि विद्या पढते है, परंतु जैनमतके शास्त्र किसी मतवालेने नहि पढे है. वेद, पुराण, कुरान प्रमुखके पढे हुये अं. ग्रेज बहुत है परंतु जैनमतके शास्त्रका पढा हुवा कोई अंग्रेज नहि है; इसका कारण तो लोक एसा कहते है कि जैनि लोक अपने शास्त्र अन्यमतवालोंकों नहि देते है, यह वाततो सत्य है, परंतु वह समय तो अब नहि रहा क्यों कि हजारों ग्रंथ जैनमतके अन्यमतवालोंके पास पहुंच गये हे. परंतु जैनमतके न फैल नेका कारण यह हैमुप्तलमानोंके राजमें जैनके लाखों पुस्तको जला दिये गये
ग्रंथ ने फ है, और जो कुछ शास्त्र बच रहे है वे नंडारोमें लनकाकारण.
"" बंद कर गेमे है वे पके पझे गल गये है, बाकी दोसो तीनसो वर्षमें तमाम गल जायगे. जैसे जैनलोक अन्य कामोमें लाखो रुपये खरचते है तैसे जीर्ण पुस्तकोको नहार करानेमें किंचित् नहि खरचता है, और न कोई जैनशाला बनाकें अपने लमकोंको संस्कृत धर्मशास्त्र पढाता है, और जैनी साधुनी प्राये विद्या नहि पढते है क्योंकि ननकों खानेकातो ताजा माल मिलते है वे पढके क्या करे, और कितनेक यति लोक इंक्यिोंका नोगमें पड रह है सो विद्या क्योंकर पढे. विद्याके न पढनेसे तों लोक श्नकों नास्तिक कहने लग गये है, फेरनी जैन लोगोंको
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