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प्रथमखंम.
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खसे सर्व वस्तु नहि देखी जाती दे तैसें भूगोल विद्यावाले उत्तर दक्षिण दिशाका कुछ अंत नदि लाये दे. कालके प्रभावसे समुकी जगे स्थल होता है और स्थलकी जगे ससुर होता है, पहा, नदीयां, शेहेरादि सब नलटपालट हो जाता है. श्री ऋषन देवके समय से लेकर आज तक असंख्य वस्तु नलटपालट हो गई है. और जैनशास्त्रका कथन तो जैसा प्रथम आरेमें था. वैसाही ग्राज तक चला आता है. तो फिर पांच में आरेमें तैसा द्वीप, समुश्की व्यवस्था कैसें देखाय ? बहुत जरतखंग ससुर जलने रोक लीया है इस वास्ते आंखोस बराबर नदी देखा सक्ता है.
दयानंद नसके ग्रंथ में लिखता है के व्यासजी और शुकदेवजी पाताल में गये सो दयानदर्के थके पृष्ट ४४५ के लेखने तो पाताल है नहि तो पातालमें कैसे गये ? अमेरिकाको पाताल हराया सो कौनसी वेदकी श्रुतिमें अमेरीकाको पाताल लिखा है ? तथा दयानंद अपने बनाये वेदनाप्य भूमिका नामके ग्रंथ में वेदकी श्रुतियो पृथ्वीका भ्रमणा, सूर्यका स्थिर रहना, तारसें खबर देना, अगनसें आगबोटका चलाना लिखता है यह लिखना नारी असमंजस और मिथ्या है, क्योंकि वेद भाष्यकारोंनें ऐसा श्रुतियोंका अर्थ किसीजी जगे नहि लिखा है.
फिर दयानंद जो तीर्थकरोकी आयु, अवगाहना और अंतर देखकर जैन शास्त्रकों जूग मानता है वो बुमा अज्ञानताका कारण है. क्योंकि कालका ऐसा प्रमाण नहि है अमुक समय से काल प्रचलित हुआ और अमुक समयमें कालका यंत प्रावेगा क्योंकि काल अनादि अनंत इव्य ( पदार्थ ) है. कोई किसी काल में मनुष्यकी आयु, अवगाहना विशेष होवे और को किसी कालमें
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