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प्रथमखम.
१५ प्रेरणा करी तो ईश्वरके मन नही है, शरीरके अन्नावसें. क्योंकि मनका संबंध शरीरके साथ है.
पूर्वपक-ईश्वरनें अपनी इच्छासे प्रेरणा करी है.
नत्तरपद-शरीर और मनके विना श्छा कदापि सिनही होती है. जेकर कहोगे ईश्वरनें अपनी शक्तिद्वारा प्रेरणा करी तो ये शक्ति किस द्वारा प्रवृत्त दू? प्रथम तो शक्ति ईश्वरसें अन्नेद है. जब ईश्वरमें हलचल होवेगी तब शक्तिनी हल चलके प्रेरणा करेगी. ईश्वर तो जैसे आकाश है तैसे सर्वव्यापी मानते है, तो फेर ईश्वरमें हलने चलनेकी शक्ति कुबनी नही है, और सर्वव्यापी होनेसं हलनेचलने वास्ते कोइ नी अवकाश नही है. इस वास्ते तेरा ईश्वर अकिंचित्कर है, आकाशवत्. जेकर कहे आकाशतो जम है और ईश्वर ज्ञानवान् है तो फिर आकाशका दृष्टांत कैसे मील शक्ता है ? नत्तर–ज्ञानको प्रकाशक है परंतु ज्ञान हलवल नहि सक्ता है इस वास्ते आकाशका दृष्टांत यथार्थ है.
इसी मुजव दयानंदने जो ईश्वर बाबत लेख लिखा है वे प्रमाण रहित है. ऐसा ईश्वर किती प्रमाणसे सिाह नही होता है तव वेद अल्पझो के बनाये सिइ हुए. अल्पशनी कैसेके जीनकी बाबत आनाक लिखता है कि. वेद धूर्त अरू राहतोके बनाये हुए है क्या जाने आनण
-कका कहनाही सत्य होवे इतना तो हमकानीमा वेद कैसे रचा लुम होता है कि वेद बनाने वाले निर्दय, मांसाहुआ ! हरी और कामी थे. और मोठमुल्लर नामा बमा पंमित तो ऐसा कहता है कि वेद ऐसा पुस्तक है कि मानो अज्ञानीयोके मुखसे अकस्मात् वचन निकला होवे तैसा है. जबवेद ईश्वरका कथन करा नदि तब तिसके माननेवाले दयानंद
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