________________
आर्ग
वाद.
प्रथमखम.
१५५ नहीं करता, ननका मन नहीं फेरता, ननके हाथ पग नहीं तोडना, इत्यादि करके पाप करने से पहलेही क्यों नही ननको बंद करता ? जेकर कहोगे पहले ईश्वरमै सामर्थ्य नही तो पीछे कहांसें आई ? और सदा अनंतदाक्तिवाला क्यों कर सिह होगा ?
तथा नास्तिक ! प्रलय कालमेंनी जीव पाप पुण्य करी नास्तिक और संयुक्त होते है नस कालमें ईश्वर फल क्यों नहीं
काल देता ? जेकर कहोंगे नस कालमें कर्मफल देनसें नन्मुख हो जाते है तो ईश्वरकों फलदाता मानना निरर्थक है. फल देने न देने वालेतो कर्म हुए.
नास्तिक-कर्म तो जड है यह क्यों कर अपने आप फल दे सक्ते है.
आस्तिक-जहरतो जड है यह क्यों कर अपने आप फल खाने वालेको मार देता है.
नास्तिक-ईश्वर जेकर फल न देवेतो ईश्वरमें जो अनंत सामर्थ्य है वो सृष्टि रचे विना क्यों सफल होगी?
आस्तिक-ईश्वरमें जो सृष्टि रचनेकी सामर्थ्य सृष्टि रचे विना सफल न होवे तो मनुष्यका अवतार धार कर स्त्रियोंसें नोग करना, परस्त्रियोंके कपढे चुराने, ननकों अपने सन्मुख नग्न खमी करना, स्त्री आगे नाचना, अपनी बेटिसे नोग करना, सतीयाके शील ब्रष्ट करने वास्ते निखारीका रूप धारन करना, इत्यादिक अनेक कुकर्म करके पीने निराकार निरंजन परमात्मा बन बयग्ना इत्यादिक जो ईश्वरमें सामर्थ्य है तो इन कामोंके कीये विना क्योंकर सफल होगी. जेकर कहोगे यह सामर्थ्य ईश्वरमें नही, तो हे नास्तिक ! सृष्टि रचनेकी सामर्थ्य कैसे होगी ? जेकर कहोगे ईश्वरमें अनंत शक्ति है इस वास्ते सृष्टि रच सक्ता
24
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org