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________________ अज्ञानतिमिरजास्कर. तथा हमारे समय में जो दयानंद सरस्वतीजीने नयी तरेका दयानंद सूर मत निकाला है सो एसा सुनने और पढने में आया स्वतीका वेद संबंधे विचार है कि दयानंद सरस्वती वेदांकी संहिता और ऐक शावास्य उपनीपद वर्जके और किसी पुस्तकको परमेश्वरका रचा नही मानता है. इनोंनें वेदोंकें ब्राह्मण और आरण्यक नागनी मानने बोम दीये. कारण इनके माननेंसें उनके मतमें कुछ खलल पहुंचता होगा परंतु दयानंद सरस्वतीजीनें जो अपने बनाये सत्याप्रकाश जावा ग्रंथ में और अपने बनाये वेदनाष्यभूमिकामें और अपने बनाये ऋग्वेद यजुर्वेद भाष्य में जो शतपथ ब्राह्मण और एत रेय ब्राह्मण और तैत्तरेय आरण्यक और निघंटु निरुक्त बृहदारण्यक तेत्तरेय उपनिषद प्रमुखोंका जो प्रमाण लिखा सो क्या समझके लिखा है ? क्या वेद संहितामें वो कथन नहीं था, इस वास्ते पूर्वोक्त ग्रंथोका प्रमाण लिखा ? अथवा जो लोक पूर्वोक्त ग्रंथोकों मानते थे उनको अपनी वेदनाप्यकी सच्चाइ दृढाने वास्ते प्रमाण लिखा ? वा अजाण लोगोकों भूल भूलयेमें गेरनेकों पूर्वोक्त ग्रंथोके प्रमाण लिखे ? वा वे ग्रंथ जूठ सच्चसे मिश्रित है उनमें से जो सच्चा अंश था सो प्रमाणिक जाणके तिसमें प्रमाण लिखे? अथवा जो दयानंद सरस्वती लिख देवें सो सर्व सच और ईश्वरके कदे समान है इस वास्ते लिखा है ? जे कर प्रथम पक्ष मानोंगे तबतो वेद पूरे पुस्तक नहीं क्योंकि जिनमें सर्व वस्तुयोंका कथन नही वो पुस्तक ईश्वर पूर्ण ज्ञानीका रचा दूधा नही. जे करे सर्व वस्तुयोंका कथन होता तो अल्पज्ञोंके बनाये पुस्तकोकां काहेको शरणा लेना परता. जैसें दयानंद सरस्वतीनें अपने बनाये वेदनाष्य भूमिका में मुक्ति स्वरूप विषे लिखा है, यद्यपि हमकों पूर्वले वैदिक हिंदुयोंके मतानुसार दयानंद सरस्वती के करे वेदोंके अर्थ १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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