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________________ प्रथमखंम. uu यंति च हृष्यमाला यथेह पुरुषादाः || १ || इस लोकोमें जो पुरुष पुरुषमेधा यज्ञ करते है. जो स्त्रीलोक मनुष्य पशुका मांस खाते है, सो पुरुष और स्त्रीयोंकुं ओो पशु राक्षस होकर, पीडते है. और यमराजका द्वारमें कसाइकी माफत उसका साधर पीते है. पीछे गाते है और इर्षसें नाचते है ? तथा सोमक नामा राजा था, तिसके एक पुत्र जंतुनामे या तिसको एक दिन कीकीयोंनें काटा तत्र तिसने चीसका रुक्का मारा तब राजाने शिर हलाया और कहा कि मेरे एक पुत्र है, सोनी पुत्रों में नही, तब राजाके पास जो पुरोहित खफा था हिनरमेध यज्ञपर सने कहा कि इस पुत्रकों यज्ञमें होमो तो बहुत भारतकीकथा. पुत्र होंगे; तब राजानें कहा में दोमुंगा, यज्ञ करो. पीछे तीस ब्राह्मणने यज्ञ करके राजाके पुत्रका होम करा. तद पीछे तिस राजाके १०१ पुत्र हुये पीछे काल करके ब्राह्मण यज्ञ करानेवाला नरक गया, पीछे राजाजी मरके नरक में गया. तब तीस ब्राह्मण यज्ञ कराने वालेको देखके राजानें यमराजेको कहा जो तुनमें इस मेरे गुरु ब्राह्मण को किस वास्ते नरकमें गेरा है, तब यमराजानें कहा कि तुमनें पुरुषमेध करा या तिसके पापसें तेरकों और तेरे गुरु ब्राह्मणकों नरक जोगनी परेगी. यह कथा भारत के वनपर्व में विस्तार सहित देख लेली. इससे यह सिद्ध दू कि वेदोक्त जो हिंसा करे सो नरकमें जावे इसी वास्ते तो वेद ईश्वरके कहे सिद्ध नही होते है. तथा प्राचीन वर्दिष राजानें यज्ञ करके पृथ्वीका तला दर्ज करके आच्छादित करा. ऐसा वेदोक्त कर्म करणें में जिसका मन प्रासक्त या ऐसे प्राचीन वर्हिष राजाको देखके कृपालु दवाधर्मी नारदजी तिसको प्रतिबोध करते हूये, दे राजन् ! किन कमो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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