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अज्ञानतिमिरनास्कर, मतोतं कौनसे मतको माने यह निर्णय करना बहुत मुश्किल है.
अब हम नपर लिखेकों फेर शोचते है वैदिक धर्मकी प्रबवेदोंका यज्ञोमें लता और वेदोंमें हिंसा बावत कुछ तकरारही न हिंसा बहोतहै. ही है. जानवरोंकी दया वेदोंमें नही, इतनाही नही बलकी मनुष्योंकि बलि देनी और नरमेध यज्ञकी बड़ी बड़ी विधिके नेद लिखे है.
और नरमेध जो दूए है तिनकी कथानी वेदमें जगे जगे लिखी है. ऐतरेय ब्राह्मणमें शुनःशेपाख्यान है सो इसीतरांका है. नागवतमें जडन्नरतकी कथानी इसी तरेंकी है. वैदीक धर्मकी प्रबलताके कालमें वैदिक धर्मवालोंके मनमें संशयनी नही था कि हिंसा पाप होता है की नही. शाक नाजीके काटनेमें जैसे इस कालमें बहुत लोक पाप नही समजते है तैसे तिस कालमें जनावरोंके वास्ते समजते थे. तिस कालमें तिस तरेंका व्यवहार था. दैवकार्यमें और पितृकार्यमें जनावर पशुका मारना इस बातको पुण्प समजते थे. केवल स्वर्ग जानेका साधन इसीको समजते श्रे. और मनुष्य अपने निर्वाहके वास्ते जीवांको मारके तिसका मांस खाना इसकों विधि मानते थे. इसमें पुष्प वा पाप कुठ नही समजते थे. इस तरेका वेदका अनुशासन है. जब पिछली महाभारतकी वेर जैनबौधमतका जोर बढा तब हिंसा अहिंसा
___ का बढा झगडा खमा दूा तिस वखत जैनबौधका बहुत लोगोंके दिलमें असर दूा. तिस वखतमें महानारत ग्रंथ बना मालुम होता है, क्योंकि महानारतमें लिखा है कि
बुझरूपं समास्थाय सर्वरूपपरायणः। मोहयन् लर्व नूतानि तस्मै मोहात्मने नमः ॥ ६ ॥
उत्पत्ति
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