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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर, जहां जहां शंकरस्वामीका मठ है तहां शक्तिकी उपासना विशेष करके चलती है. और हारकामें शंकरस्वामीका शारदामग्है. तहां श्रीचक्रकी स्थापना पत्थर कोरके करी है. और बहुत परमहंस, कौलिक, अघोरी, वाममार्गी, सर्वगी, इत्यादि सर्व ब्रह्ममार्गी, कहे जाते है. परंतु मदिरा मांस खूब पीते खाते है. श्रीचक्र वाममार्गीयोके पूजन करनेका देव है, सो शंकरस्वामीने स्थापन करा है, यह कथन शंकरविजयके चौसठमें तथा पैंसठ ६३ । ६५ में प्रकर में है सो निचे लिखा जाता है. ___“या देवी सर्वनूतेषु ज्ञानरूपेण संस्थिता। इति मार्कमेयवचनात् परा देवता कामाक्षीति” अध्याय १४ में । एवमेतस्मिन्नर्थे निष्पन्ने परशक्तित्त्वस्यानिव्यंजकं श्रीचक्रनिर्माण क्रियते नगवनिराचार्यः तत्रश्लोकः “ बिंऽत्रिकोणवसुकोणदशारयुग्म, मन्नस्रनागदलसंयुतषोमशारम् । वृत्तत्रयश्च धरणीसदनत्रयश्च श्रीचक्रमेतऽदितं परदेव तायाः" ॥ श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः ॥ इत्यादि वचनैःश्रीचक्रस्य शिवशक्त्यैकरूपत्वात् मुक्तिकांविनिः सर्वैः श्रीचक्रपूजा कर्तव्येति सर्वे. षां मोक्षफलप्राप्तये दर्शनादेव श्रीचक्रं आचार्निर्मितमिति ॥ पंच षष्टी प्रकरणं ॥ इस लिखनेसे यह सिह होता है कि शंकरस्वामी वाममार्गीयोकानी आचार्य था. जब ऐसा दूया तबतो शंकरस्वामीने अनुचित कर्म किया होगा. शंकरस्वामीनेन्नी हिंसाहीको धर्म माना, पीठे शंकराचार्यको राजा लोगोकों बहुत मदत मिली तब बोहोंसें समाई करी और बौध लोगोंकी विना गुनाहके काल कर डाला. यह कथन माधवाचार्य अपने बनाये दूसरे शंकरविजयमें लिखता है. वे श्लोक ये है-" आसेतुरातुषास्बिौहानां वृध्वालकं। ना हंति यः स हंतव्यो नृत्यं इत्यवशं नृपाः ॥ न वदेद्यावनीं नाषां प्राणैः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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