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प्रथमखंग. शोंमें फैल गया था.सोई कितनेक देशोमें अवनी यज्ञकी कुरवानी प्रमुख करते है, और वेदमंत्रोंकी जगे बिसमिल्लाह प्रमुख शब्द नचारते है. क्योंकि नारत और मनुस्मृतिमें लिखा है-शक यवन और कामजोज पुंरुक अंधविक यवनशक पा. रद पलव चीन किरात दरद खत ये सर्व क्षत्रिय जातिके लोक थे. ब्राह्मणोंके दर्शन न होनेसे म्लेच हो गये. इससे यह सिद दूा कि जिस जगे अवनी जानवरोकी बलि देते है अर्थात् कुानीयां करते है ये सर्व ब्राह्मणोनेही हिंसक धर्म चलाया है. और यहनी सिह होता है कि जिस समयमें मनुस्मृति बनाई गई है तिस समयमें इन पूर्वोक्त देशोमें ब्राह्मणोंका वेदोक्त धर्म नहीं रहा था. जब जैन बौधोंका जोर दूया, तब बौध मतके आचार्य मोजलायन और शारिपुत्र प्रमुख पंमितोनें देशोमें फिरफिरके अपने नपदेशद्वारा उत्तर पूर्वमेंतो चीन ब्रह्मातक बौधधर्म स्थापन करा और दक्षिणमें लंकातक स्थापन करा.नधर जैनाचार्य औरजैन राजे संप्रति प्रमुखोने नपदेशद्वाराधंगालसे लेकर काबूल, गजनी, हिरात, ब्रुखारा, शक पारसादि देशोंतक और नेपाल स्वेतांबिका तक, दक्षिणमें गुजरात, लाम, कौंकण, कर्णाट, सोपारपत्तन तक जैन मतकी वृद्धि स्थापन करी. तब हिंऽस्थानके ब्राह्मण कहनें लगेकि कलियुग नत्पन्न हुआ, इस वास्ते वैदिक धर्म मूब गया. कलि अर्थात् जैनबौधमतकी प्रबलता, क्या जाने ब्राह्मणोंने यह युग जुदा इसी वास्ते माना हो, जैन बोध मतकी प्रबलतामें एक और ब्राह्मणोकी जानकों क्लेश नत्पन्न हुआ कि कितनेक लोकोंने सांख्य शास्त्रका अभ्यास करके कहने लगे के ब्राह्मण लोग अग्नि, वायु, सूर्य इत्यादि अनेक देवतायोंकी उपासना करते है, और तिनके नामसे यज्ञ याग करतें है. परंतु ये देवते कहां कहे है, ये तो पदार्थ है. इनके वास्ते जीवहिंसा करनी और
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