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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर. धर्मशास्त्रमें सूत्रग्रंथ वेदोंके बराबर माने है. वेदार्थ लेकेहो सूत्र रचे है और सूत्रोंसें श्लोकबंध स्मृतियां बनाई गई. पीछे पुराणादि बने है. जब वेदोंकों देखिये तो मांस और जीवहिंसा करनेका कुबनी निषेध नहीं. जिस वखत स्मृतियोंके बनाने का काल था तिसमें अर्थात् कलियुगके प्रारंनमें एक बडा उपश्व वैदिक धर्म नपर नुत्पन्न हुआ. सो जैन बौध धर्मकी प्रबलता दूई. जैन बौधोने वेदोकं हिंसक शास्त्र अनीश्वरोक्त पुनरुक्त अझोंके बनाये सि करे, जिसका स्वरूप नपर कुछक लिख आये है. इस जरत खंडमें प्रायः हिंसक धर्म वेदोहिंसें चला है. जब वैदिक धर्म बहुत नष्ट हो गया तब लोगोंने ब्राह्मणोंसे पूग कि तुमतो वेद वेदोक्त यज्ञादिक धर्म ईश्वरके स्थापन करे जगतके नझार वास्ते कहते थे वे नष्ट क्यों कर हो गये. क्या ईश्वरसेंन्नी कोई बलवान है, जिसने ईश्वरकी स्थापन करी वस्तु खंडन कर दीनी. तब ब्राह्मणोंने उत्तर दिगा कि यह बुधनी परमेश्वरका अवतार है. सोश गीतगोविंद काव्य ग्रंथकी प्रथम अष्टपदीमें दशावतार वर्णन करे है तिसमें बुध वास्ते ऐसे लिखा हे॥"निंदसियज्ञविधेरहहः श्रुतिजातं सदयदृदयदर्शितपशुघातं केशव धृतबुझारीरं" ॥ गीतगोविंद ॥ __ अर्थ-नगवान विष्णुने बुक्का रूप धारके वेदमें कही यज्ञ वि धिकी निंदा करी कारण कि यझमें पशु मारे जाते है, तिनकी नगवानकों दया आई. इसी ग्रंथमें एक श्लोकमें दश अवतारका वर्णन करा है, तिनमें बुझ विषय ऐसा जयदेव स्वामीने लिखाहै, " कारुण्यमातन्वते” अर्थ-बुनें दया धर्म प्रगट करा, इससेंनी यह सिह होता है दया धर्म आगे बहुत लुप्त हो गया था और वैदिक ब्राह्मणोंने बहुत जगें हिंसक धर्म अर्थात् हिंसक वैदिक यज्ञ धर्म फैला दिया था. सो सर्व हिंदुस्थान, फारस, रुम, अरब वगैरे दे For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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