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________________ प्रथमखम. यत्किंचन्मधुसंमिश्रं गोदीरं घृतपायसं ॥ ३५ ॥ दत्तमचयमित्याहुः पितरः पूर्वदेवताः ॥ ३६ ॥ इन श्लोकोंका अर्थ नपर स्मृतिश्लोकवत् जान लेना. अथ मारकंम ऋषिका पुराण है तिसके १३ में अध्यायमें देवीका महात्म्य है तिसको चंडिपाठ कहते है, सो लोक बहुत बांचते है. और तिस नपरसें जप होम पूजा आदि अनुटान करते है. तिसमें नीचे लिखे हुये श्लोक है. बलिप्रदाने पूजायामग्निकार्ये महोत्सवे । अ, १२ श्लो. १० पशुपुष्पार्घधूपैश्च गंधदीपैस्तथोत्तमैः ॥ १२-१० रुधिरोक्तेन बलिना मांसेन सुरया नृप । १५-१७ अर्थ-देवीकी पूजामें बलिप्ररान करणा और गंध पुष्प तथा जानवरजी देने और लोहयुक्त मांस और मदिरा देवीको अर्पण करणा. भारत यह वमा इतिहासका ग्रंथ है. तिसमेनी जो जो राजे बहुत शिकार करते थे और बहुत जानवर मारते थे तिनकी कीर्ति व्यासजीने बहुतवर्णन करी है.तिसके योमेसे वचन लिखते है. १ ततस्ते योगपधेन ययुः सर्वे चतुर्दिशं । मृगयां पुरुषव्याघ्रा ब्राह्मणार्थे परंतपाः॥४॥ धारते द्रौप दीप्रमाथे ? सर्गे. १ ततो दिशः संप्रविहृत्य पार्था, मृगान्वराहान्महिषांश्च हत्वा । धनुर्धराः श्रेष्टतमाःपृथिव्यां, पृथक् चरन्तः सहिता बन्नूवुः॥१॥ द्रौपदी प्रमाथे षष्ठमसर्गे ३ ततो मृगसहस्राणि हत्वा स बलवाहनः । राजा मृगप्रसडेन बनमन्याधिवेश द ॥१॥ शकुन्ततृतीय सर्गः प्रथम श्लोकः अर्थ- ब्राह्मणोंके वास्ते बहुत हरिण मारके ल्याये. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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