________________
४3
प्रश्रमखम. दश पार्षतेन संवत्सरं तु वाधीनमांसेन द्वादश वर्षाणि खड्गमांसं कालशाकंलोहडागमांसमधुमहाशडकोऽक्षयतृप्तिः ॥ इति सूत्रम् ॥ अर्थ-मरनारकुं बकरेसें तृप्ति होती है. मरेलाको निमित्त दो मास मनुष्यका मांस, तीनमास हरिणकामांस, चारमास नोलकामांस पांचमास पतीकामांस, रठे बकरेकामांस, सातमे कूर्मकामांस आग्में वराहकामांस, नवमें मेंढाकामांस, दशमे पाडाकामांस अगीयारमें पर्षतकामांस और बारमें सवत्सरीमें वार्धीनकामांस ए बारमासे मांस देनेसे अक्षय तृप्ति होती है.
माध्यंदिनी शाखाके जो ब्राह्मण है, वे कात्यायन सूत्रका उपयोग करते है. तिनमें मधुपर्क अन्नप्राशन शूलगव श्राद यद चारों अनुष्टानमें हिंसाका प्रतिपादन करा है. सो आश्वलायन सूत्र समान जान लेना, इस वास्ते विस्तार नही लिखा है. तथा संस्कृत शब्दोहीसें जान लेना. कात्यायन यजुर्वेदका सार सूत्र है.
__ अथ सामवेदका लाट्यायन ऋषिका करा लाट्यायन सूत्र है तिसकानी किंचित्मात्र स्वरूप नीचे लिखते है,
लाटयायनीय श्रौतसूत्रम् १ उक्षा चेदनूवंध्य औक्ष्णोरन्ध्रे १-६-४२ २ ऋषभ आर्षभं १-६-४३ ३ अज आजिगं १-५-४६ ४ मेष और्णावयं १-६-४७ ५वपायां हुतायां धीष्णपानुपतिष्टेरन् २-२-१० ६ न शूद्रेण संभाषेरन् २-२-१६ ७ गोष्टे पशुकामः ३-५-२१ ८ स्मशानेऽभिचरन् ३-६-२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org