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________________ ४६ अज्ञानतिमिरजास्कर. ७ धर्मज्ञसमयः प्रमाणं वेदाच १-२-२ अर्थ - १ गाय तथा बलद जक्षण करणे योग्य है. २ पक्षी क्षण योग्य है ऐस ब्राह्मणग्रंथ में है. ३ बलद यज्ञपशु है ऐसें वाजसनीय कहे है. रखना. ४ गावका वध करके मधुपर्क करणा यह वेदाज्ञा है. ए आचार्य, ऋत्विज, वर, तथा राजा इनकों मधुपर्क देना चाहिये. ६ श्वशुर इत्यादि एकैक वर्षीतरे घरमें थावे तो मधुपर्क करना. ७ धर्म जानने की जिसको इवा होवे तिसने वेदका प्रमाण कात्यायन कल्पसूत्रम् जयंति आचार्य शत्विग्वैवाद्यो राजा प्रियस्नातक पेरु इति गौरिति त्रिः प्राह बालनेत् । अन्नप्राशन. नारद्वाजमांसेन वाक्यं सारिकामान्चकपिंजल मांसेनान्नाद्यकामस्य मत्स्यैर्जवनकामस्य कृकरवैराऽयुः कामस्य शूलगवः स्वर्गपशव्यः रौई पशुमालनेतृ. नवकंडिका श्राद्धसूत्रं ॥ अथ तृप्तिः बागो मेषानालस्य न स्वयमृतानादृत्य पचेन्मासद्वयं तु मत्स्यैर्मासत्रयंहारिणेनचतुरः प्ररत्रेण पंच शाकुनेनपटू are सप्त कोर्मेट वाराहेण नव मेषमांसेन दश माहिषेौका१ आचार्य ऋत्विक् विवाह के योग्ग पुरुष, राजा, प्रियमत्र, और स्नातक - ए छ अर्धं देने के लायक है, तिनकुं गाय धरना चाहीये - सारिक, मत्स्य, कपिंजलका मांस से अन्नादि मीलते है. मत्स्यसें वेग मीलते हैं. कृकवाकुना मांससें आयुष्य वचते है. शूलगवलें स्वर्ग मिलते है, रुद्रके वास्ते पशुमारना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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