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अज्ञानतिमिरनास्कर. १. अर्थ-गृह्यसूत्रके प्रथमाध्यायकी ग्यारमी कामिकाके प्रथम सूत्रमें पशुके यझकी विधि विधान लिखा है.
अनिके नत्तर पासे पशु वध करनेकी जगा बनानी औ. र पशुको स्नान कराणा और पलाशकी गीली मालीसें तिसका स्पर्श करणा और कहना कि तूं देवका नद है. इस वास्ते तुज को नक्षण योग्य करता हूं.
३ सट्ठी तथा जव पाणीमें गेरके सो पाणी पशु नपर गंटना. ४ जलती मान लेके पशुकी प्रदक्षिणा करणी. ५ वोही जलता मान लेके पशुके आगे चलणा. ६ पशुको वध करणेके ठिकाने ले जाना, ७ वपा कलेजा यज्ञका मंत्र पढना. ७ वध करके पशुकी नानिके ठिकानें वपा कलेजा होता है सो ठिकाना छेदके वपा काढनी.
नारायण वृत्तिका अर्थ-वधस्थलमें मान्न बिगनी. तिसके उपर पशुको मारणा एसी वेदकी आज्ञा है. तिस वास्ते तिस मु जब करके पीछे पेट छेदन करके वपा अर्थात् कलेजा काढना और वधस्थलके नजीक अनि नपर तपाके तद पीछे तिसके उपर घृत गेरके अग्निमें होम करणा.
दूसरे अध्यायमें मेकरके अन्न प्राशन संस्कार लिखा है तिसके सूत्र नीचे लिखे जाते है.
१ पष्ठेमास्यन्नप्राशनं ॥ १ अ० १६ क सू. २ आजमनाद्यकामः ॥ १-१६-२. ३ तैत्तिरं ब्रह्मवर्चसकामः १-१६-३.
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