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श्री आत्मबोध.
ते बळी अतिशय गवाळी, हीन अंगवाळी, कृशोदरी, वृकोदरी, कृश हृदयवाळी, नेत्रादिकथी होन, उंची दृष्टिवाळी, नीची दृष्टिवाळी, धोमुखवाळी ने जयंकर मुखवाळी प्रतिमा देखनारने शांत जाव नहीं उत्पन्न करना। तेमस्वामीनो नाश, राजादिकनो जय, अव्यनो नाश, अने शोक-संताप आदि अशुजने सूचवनारी होवाथी ते सज्जन पुरुषोने पूजनीय कहेली बे. अने यथोक्त उचित अंगने धरना ने शांत दृष्टिवासी जिनप्रतिमा सद्भावने उत्पन्न करना। तथा शांति ने सौभाग्यनी वृद्धि करवा प्रमुख शुन ने आपनारी होवा - थी सदा पूजनीय कडेली छे.
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गृहस्थोए पोताना घरने विषे केवी प्रतिमा पूजवी जोइए ?
गृहस्थ पोताना घरने विषे केवी प्रतिमा पूजवी जोइए ? तेनुं स्वरूप दर्शावे . पूर्वे दर्शावेला दोषथी रहित, एकथी लइने अगीयार आंगळ सुधीना मानवाळी, परिकर सहित - एटले अष्ट प्रातिहार्य सहित, सुवर्ण, रुपं, रत्न अने पीतलादि धातुमने सर्व अंगे सुंदर, एवी जिन प्रतिमा गृहस्थे पोताना घरने विषे स्थापी सेवा योग्य छे. परिकर विनानी उपर कहेला मानथी रहित, पाषाण, लेप, दांत, काष्ट, लोह ने चित्रमां आलेली जिनमतिमा गृहस्थने पोताना घरने विषे पूजनिक नयी श्रेटले पूजवी न जोइए तेने माटे शास्त्रमां कबे के,
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" समयावलि सूताओ लेवोबल कदंतलो दाणं । परिवारमाणरदियं घरंमि नहु पूयए बिंबं ॥ १ ॥
ते घर देराशरनी प्रतिमानी आगळ बलिबाकुलनो बहु विस्तार न करवो; पण जावथीज निरंतर न्हावण करवुं ने त्रिकाल पूजा करवी. - गीयार यांगळी अधिक प्रमाणबाली जिनप्रतिमा घरने विषे पूजवी नहीं. तेव प्रतिमा तो देराशरने : विषेज पूजवा योग्य बे. तेमज अगीयार आंगळथी हीन प्रमाणवाली प्रतिमा मोटा देराशरमां स्थापत्री नहीं, ए पण विवेक राखवो. विधिपूर्वक जिनबिंबना करनार तथा करावनारने सर्वकाल समृद्धिनी
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