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प्रथम प्रकाश
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बोनी संख्या मेळववाने माटे “ सत्ताण वईसहस्सा" इत्यादि वे गाथाओ कहेली ने अने ते उपरथी सर्व संख्या प्राप्त कराय जे. अहींा चैत्यो अने जिनबिंबोना अविसंवादी स्थानोने आश्रीने आ संख्या देखामी जे. केटलाएक - चार्य विसंवादि स्थानोने आश्रीने आंतरारहित कहेली संख्यानी अपेक्षाए चैत्य अने बिंबोनी संख्या वधारे प्रतिपादन करे . ते विषे संघाचार नामनी चैत्यवंदन नाष्यनी टीकाने विषे नीचे प्रमाणे कयुं . " सगकोमिलक बिसयरि, अहो य तिरिए उतिसपणसयरा । चुत सिलखा सग नवई, सहसतेविसुवरिखोए ॥ १ ॥ तेरस कोमि सया कोमिगुण नव सहिलक अहदोए । तिरिए तिलक तेणव सहस्सपमिमाउसयचत्ता ॥ ३ ॥ बावन्न कोमिसय चनणव सकसहस चनयाल । सत्तसयासटिजुआ सासयपमिमान वरिलोए ॥ ३ ॥
अधोलोकने विषे सात क्रोम अने बोहोतेर लाख चैत्यो .. तिरगलोकमां प्रत्येक नवने एक एक चैत्यनो सद्भाव होवाथी बत्रीशोने पंचोतेर चैत्यो . ते चैत्योने विस्तार पूर्वक कहे . पांचमेरु, वीश गजदंता पर्वतो, जंबू शामली प्रमुख दश वृदो, एंशी वखारा पर्वतो, एकसों सीतेर दीर्ध वैताढय पर्वतो, त्रीश कुलगिरि पर्वतो, चार इषुकार पर्वत, मानुषोत्तर पर्वत, नंदीश्वर छीप, कुंमाघीप, अने रुचकछीपने विषे अविसंवादी स्थानोमां चारशो ने वेशन चैत्यो जे पूर्वे कहेला ले, ते जाणवा. बाकी रहेल चैत्योनी संख्या विसंवादी स्थानने विषे , ते आ प्रमाणे-पांचमेरुनी अपेक्षाए पांच नषशान वनने विषे आठ आठ करिकूट ( हाथीना आकारना ) पर्वतो . ते दरेक पर्वत ऊपर एक एक चैत्य होइ बधा मनी चालिश चैत्यो आवेला . गंगा सिंधु वगेरे नदीओना प्रपात कुंमो त्रणसो ने एंशी , ते दरेकमां एक एक चैत्य होवाथी त्रणसोने एंशी चैत्यो त्यां रहेला . एंशी पद्मजह . तेमांपण एंशी चैत्यो पांच देवकुरु अने पांच उत्तरकुरुने विषे दश चैत्यो, हजार कांचनगिरिओने विष हजार चैय, अने वीश यमनगिरिमां वीश चैत्यो सीतेर गंगादि महा नदीअोमां सीतेर चैत्यो : वीश वृत वैतान्योने
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