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________________ प्रथम प्रकाश. ३.३ ४ चोथी श्रद्धा कुदर्शनने त्याग करवा रूप बे. कुदर्शन एटले जैन शिवाय बौद्ध वगेरेना दर्शनो तेनो त्याग करवाथी सम्यक्त्वनी चोथी श्रद्धा कहेवाय बे. ए चार श्रद्धा उपरथी पुरुषमां सम्यक्त्वनी प्रतीति थाय बे. सभ्यग्दर्शनवाला प्राणी ओए पोताना आत्माना गुणोने निर्मल करनारी ए परमार्थ परिचय वगेरे चार याने निरंतर धारण करवी. तेमां खास करीने चोथी श्रवामां कला कुदर्शनवाला पुरुषोनो सर्वथा त्याग करवानो बे. कारण, ते पोताना दर्शननी मक्षिताना हेतु रूप बे. जो कुदर्शनीनो संग न वर्जे तो जेम गंगानुं जल लवण समुडना संसर्गयी तत्काल खारुं थइ जाय छे, तेम सम्यग्रह ष्टिना उंचा गुणो तेवा कुगुरुना संसर्गथी तत्काल नाश पामी जाय बे; तेथी सर्वथा तेमनो संसर्ग वर्जवो; एवो जिनेश्वरनो उपदेश जे. त्रण लिंगनी व्याख्या. १ शुश्रूषा - एटले सांजळवानी इच्छा. सद्झानना हेतु रूप एवा धर्मशास्त्र सांजळवा उपर प्रीति साकरना स्वादथी पण वधारे मधुर ने युवान सुंदर स्त्री परिवृत थइ दिव्य गीतने सांभळवानी इच्छावाला चतुर पुरुषने जेवो राग था, तेवी रीते धर्म सांनळवानो आत्मानो जे अध्यवसाय ते शुश्रूषा नामे सम्यक्त्वनुं पेहेलं लिंग - चिन्ह छे. ज्यारे जव्य जीवने सम्यक्त्व प्राप्त aj होय, त्यारे एवा परिणाम थाय बे. २ धर्मराग – चारित्रादि धर्मने विषे राग ते धर्मराग नामे वीजुं चिन्ह कहेवाय . एटले कोइ मोटी वीनुं उल्लंघन करी आवेलो ने कुधाथी जेनुं शरीर की थइ गयुं बे, एवो ब्राह्मण जेम वेबर खावानी इच्छा करे तेम सम्यक्त्ववालो जीव कोइ कर्मदोषी सदनुष्टानादि धर्म करवाने अशक्त होय पण तेने धर्मने विषे सीव्र अभिलाष होय बे, तेवं धर्मरागनुं चिन्ह कहेवाय बे. ३ देवगुरुनी वैयावच करवानो नियम ए सम्यक्त्ववंतनुं बीजं चिन्ह बे. देव एटले अतिशय आराधन करवा योग्य अरिहंत ने गुरु एटले शुरू धर्मनो उपदेश करनारा आचार्य भगवान, तेनी वैयावच करवामां यथाशक्ति सेवा प्रमुख करवानो नियम, जे नियम श्रेणिक वगेरेने हतो. महान् श्रेणिक ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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