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________________ श्री आत्मप्रबोध. के. चार प्रकारनी श्रघा, त्रण लिंग, दश विनय, त्रण शुचि, पांच दूषण रहित, आउ प्रनावक, पांच नूषण, पांच लक्षण, उ जयणा, आगार, नावना अने उ स्थानक, एवी रीते सम्यक्त्त्वना समसठ नेदो थाय . ए समसठ नेदोए जे युक्त होय तेने निश्चयथी विशुच्छ सम्यक्त्त्व प्राप्त थाय . चार श्रघा. १ परमार्थनी स्तवना, ५ परमार्थ जाणनारनी सेवा एटले तेनी गुरुपणे मान्यता, ३ जेमणे सम्यक्त्त्व वमेधुं होय तेवा व्यापन्न दर्शनीअोनुं वर्ज, तथा अन्य दर्शनीओनो त्याग करवो. आ चार प्रकारनी श्रघा कहेवाय जे. जेन श्रा चार श्रधा होय तेने अवश्य सम्यक्त्त्व होय . त्रण लिंग, जेनामां सम्यक्त्व होय, तेने ओळखवाना जे चिन्होते लिंग कहेवाय जे. १ शुश्रूषा, धर्मराग अने ३ वैयावृत्य ए त्रण लिंग जाणवा. दश प्रकारनो विनय. १ अरिहंत, २ सिफ, ३ चैत्य, ४ श्रुत, ५ धर्म, ६ साधुवर्ग, ७ श्राचार्य, उपाध्याय, ए प्रवचन अने १० दर्शन ए दशनो विनय करवो ते दश प्रकारनो विनय कहेवाय . जक्ति-बहुमान आदिथी विनय कराय . त्रण प्रकारनी शुछि. १ जिन, २ जिनमत अने ३ जिनमतने विषे रहेला जे साधु साध्वी वगेरे, तेनाथ। बीजाने असाररूपे चिंतववा-ए त्रण प्रकारनी शुचि कहेवाय . पांच दूषण. ? शंका, २ कांक्षा, ३ विचिकित्सा, ४ कुदृष्टि प्रशंसा अने ५ कुदृष्टिनो परिचय ए सम्यक्त्वना पांच दूपणो वर्जवा योग्य जे. आठ प्रत्नाविक. ५ प्रवचनी, २ धर्मकथी, ३ वादी, ४ नैमित्तिक ५ तपस्वी, ६ प्रज्ञप्ति Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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