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ខ៥
श्री आत्मप्रबोध. अर्थात् पुद्गलो, वेदन स्वरुप ते पुद्गलिक सम्यक्त्व अने कयोपशम करवाथी जे जीवना परिणाम ते अपुद्गलिक सम्यक्त्व एम समजवू.
सम्यक्त्वना बीजा वे प्रकार. वती निसर्ग अने अधिगम एम वे प्रकारे पण सम्यक्त्व कहेवाय . तीर्थकर तथा गणधर वगेरेना उपदेश शिवाय स्वाजाविक कर्मना उपशम दयपणाथी जे सम्यक्त्व प्रगट थाय, ते निसर्गसम्यक्त्व कहेवाय जे. श्री तीर्थकर गणधर वगेरेना उपदेशथी तया जिन प्रतिमा देखवायी अने वीजा शुन बाह्य निमित्तना आधारथी कर्मनो उपशम-क्ष्य थतां जे सम्यक्त्त्व थाय ते अधिगम सम्यक्त्व कहेवाय जे.
ते विषे मार्ग तथा ज्वरनुं दृष्टांत. एक वटेमाणु मार्गथी भ्रष्ट थयो होय, ते कोइना बताव्या शिवाय नमतो जमतो पोते तेज खरे मार्गे जेम आवी जाय , तेवी रीते निसर्गसम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय जे. कोइ वटेमामु मार्गथी नष्ट थतां कोइना बताववाथी खरे मार्गे आवे तेवी रीते अधिगम सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय . जेम कोई माणसने ज्वर आव्यो होय ते परिपक्क स्थिति थातां औषधना उपचार विना स्वानाविक रीते उतरी जाय जे तेवी रीते निसर्ग सम्यक्त्व समजवू अने जेम कोइनो ज्वर औषधना उपचारथी उतरी जाय , ते अधिगम सम्यक्त्व जाणवू. एवी रीते प्राणीने मिथ्यात्व रूप ज्वरना जवाथी सम्यक्त्व मार्गनी प्राप्ति थाय जे अने ते निसर्ग अधिगम रूप थाय.
सम्यक्त्वना त्रण प्रकार. कारक, रोचक अने दीपक एम सम्यक्त्व त्रण प्रकारनुं जे. जे जीवोने सम्यक् प्रकारना अनुष्ठाननी क्रियानी प्रवृत्ति करावे ते कारकसम्यक्त्व कहेवायजे. एटवे ते सम्यक्त्वमा उत्कृष्ट विशुधि-निर्मळतारुप सम्यक्त्व प्रगट थतां जीव सूत्रमा कहेवा प्रमाणे क्रिया करे , तेथी ते कारक सम्यक्त्व कहेवाय . ए कारक सम्यक्त्व विशेष निमळ चारित्रवाळानेज प्राप्त थायजे. मात्र श्रधान ए रोचक सम्यक्त्व कहेवाय जे. ए सम्यक्त्वमां जीवने सम्यक् अनुष्ठाननी प्रवृत्ति
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