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प्रथम प्रकाश.
नो अभिप्राय कहे जे
अनादि मिथ्यादृष्टि को ग्रंथिनेद करीने तेवी रीतना तीव्र परिणाम साथे अर्ज करणमां आरूढ थइ मिथ्यात्वना त्रण पुंज करे जे, ते पड़ी अनिवृत्ति करणना सामर्थ्यथी शुन्छ पुंजना पुद्गलोने वेदता उपशम समकित पाम्या वगरज तेने प्रथमथीज श्योपशम सम्यक्त्त्व प्राप्त थाय .
अन्य प्राचार्य वळी आ प्रमाणे कहे . “यथाप्रवृत्ति वगेरे त्रण करण करीने अंतर करणने पेहेले समये उपशम सम्यक्त्त्व पामे छे, पण ते त्रण पुंजने करतो नथी अने ते पड़ी उपशम सम्यक्त्त्वथी एमी अवश्य मिथ्यात्वमांज जाय जे." आ विषे तत्व शुंडे ? ते केवती नगवान् जाणे .
हवे कटप जाप्यने विषे कहेल त्रण पुंजनो संक्रमण विधि बतावे - मिथ्यात्वना दलिया रूप जे पुद्गलो , तेमने खेंचीने जे सम्यग्दृष्टि ते जेना परिणाम विशेष वधता रे ते सम्यक्त्त्व अने मिश्र ए बनेनी मध्ये संक्रमावे जे, अने सम्यग्दृष्टि मिश्र पुद्गलोने सम्यक्त्वमा संक्रमावे , अने मिथ्यात्वी मिश्र पुद्गलोने मिथ्यात्वमा संक्रमावे डे अने सम्यक्त्वना पुद्गलोने मिथ्यादृष्टि मिथ्यात्वने विषे संक्रमावे पाण मिश्रयां संक्रमावे नहीं-ए प्रकारे पण मिथ्यात्व हीण न थयुं होय त्यांसुधी सम्यग्दृष्टिओ नियमा ए त्राण पुंजवाला होय . मिथ्यात्वनो कय थतां निचे वे पुंजवाला होय डे, अने मिश्रनो कय थतां एक पुंजवाला होय , अने सम्यक्त्वनो कय थतां दायिक समक्तिी होय . उपर ज्यां ज्यां सम्यक्त्व, मिश्र अने मिथ्यात्व ए त्रण शब्दो योजवामां आव्या जे, त्यां त्यां मोहनीय शब्द साथे जोमवाथी सम्यक्त्त्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय अने मिथ्यात्व मोहनीय एम जुदा नाम पझे .
वत्री कर्मग्रंथना अभिमाये एम जे के, “ पहेलवेलो सम्यक्त्व पामेस्रो जीव सम्यक्त्वमाथी पतित थ६ मिथ्यात्वने पाम्या उतां फरीथी उत्कृष्ट स्थितिवाली कर्म प्रकृतिने बांधे , अने सिद्धांतना अभिप्राय प्रमाणे एम डे के, जेणे ग्रंथिनेद करी सम्यक्त्व प्राप्त करेल डे, एवो जीव सम्यक्त्त्वथी पतित थइ पुनः कर्मनी उत्कृष्ट स्थिति बांधतो नथी. ा स्थने सम्यक्त्वना विचारने माटे घणी
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