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________________ ४० श्री प्रात्मप्रबोध. जाग हीन करतां सिक अवस्थाने विषे साडात्रणसो धनुष्यनी अवगाहना प्राप्त थाय , त्यारे उपर कहेन त्रणसो तेत्रीश अने एक धनुषनो त्रीजो नाग ए शीरीते घटे ? आ शंकाना उत्तरमा कहेवानु,के मरुदेवाना शरीरनुं प्रमाण नानिराजाना करतां कांक अोर्छ होवायी पण कोइ जातनो विरोध प्रावतो नथी; कारण के, उत्तम संस्थानवाळी स्त्रीओ उत्तम संस्थानवाळा पुरुषोथी पोतपीताना काळनी अपेक्षाए करी काश्क ोग प्रमाणवाली होय छे; ते उपरथी मरुदेवा पण पांचसो धनुष्यना प्रमाणवाळा जाणवा; एवी रीते होवाथी को जातनो दोष आव. तो नथी. तेम वळी मरुदेवा हाथीना स्कंध उपर आरूढ थतां संकुचित अंगवाळा सिफिपदने पाम्या जे. त्यारे शरीरना संकोचपणाना सदनावथी अधिक अवगाहना संजवती नथी; ए पण अविरोध-निर्दोष . ते उपर नाष्यकार आ प्रमाणे कहे छे “कहमरुदेवा माणं नानीतो जेण किंचिदूणा सा । तो किर पंचसयच्चिय अहवा संकोचतो सिका" ॥१॥ (आ गाथानो अर्थ उपर कहेवामां आव्यो .) मध्यम अवगाहनानुं स्वरूप. " चत्तारिय रयणीओ, रयणीतिभागुणिया य बोधव्वा । एसा खनु सिकाणं, मज्झिमोगाहणा भणिया" ॥१॥ " चार हाथ अने एक हाथना त्रण नागमाथी चे जाग उपर एटने हाथ १३ मध्यम अवगाहना जाणवी." १ अहिं वादी प्रश्न करे छे के, जघन्य पदणी सात हाथ उंची अवगाहनावाळा जीवोनी सिद्धि आगमने विषे कही छे, माटे उपर कहेगी । मघन्य स्थिति थाय छे; पण मध्यम स्थिति केम थाय ? आ प्रश्नना उत्तरमा कहेवातुं के, तीर्थकर जगवान्नी अपेक्षाए करीने जघन्य पदथी सात हाथनी अवगाहनावाळाओने सिदि कहेली ने अने सामान्य केवनीनी अपेक्षाए तेना करवा दीन प्रमाणवाळाप्रोने पण सिदि थाय ने, प्रा Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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