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तृतीय प्रकाश. बे, तेथी साधुने वर्तमान योगवझे बोलवानो व्यवहार जे." १
वली “आ वाउडा धुंसरी खमवाने योग्य थयेला , एटला आंबाना फल नक्षण करवा लायक , आ दो स्थंभ, नार, वस्त्र, शय्या अने आसन प्रमुखने योग्य , ए शाळी, गोधम आदि अन्न बाणी करवाने योग्य थयेला ."
आवा प्रकारना वचनो साधुए बोलवा न जोइए, कारणके, साधुना वचनो प्रतीतिपात्र होवाथी ए वृषनादिकने गामे जोमवा प्रमुख क्रियानो काल थइ गयो , एम निश्चय करी सांजलनार पुरुषो तेमना दमनादि कार्योमा प्रवर्ते तेयी मोटो
आरंज थवानो संचव ने तेम माता, पिता, नाइ, व्हेन आदि स्वजनोने “ हे मात, हे तात, हे नाइ, हे व्हेन" इत्यादि नाषावमे साधु बोलावे नहीं, कारण के, साधु लोकाचारथी रहित होवायी लोक संबंधीना नाषणनो अनधिकारी, मे, तेने माटे आ प्रमाणे कहे छ" दम्मे वसहे खज्जे, फले थंना समुचिए रुके ।
गिब्ने अन्ने जणयाश्यति, सयणे वि न बवे" ॥१॥ ___आ गाथानो अर्थ उपर आवी गयो जे. अहीं विशेष कहे छे के," राजेश्वराद्यैश्च कदापि धीमान् , पृष्टो मुनिः कूपतमागकार्ये । अस्तीति नास्तीति वदेन्नपुण्यं, नवंति यद्भूत वांतरायाः॥१॥
__" राजा, धनाढ्य वगेरे कदि कुवा के तलाव कराववाना कार्यमां मुनिने पुण्य विषे पूछे तो बुधिमान् मुनि तेमां'छ अथवा नथी' एम कहे नहीं. कारण के, तेम एक बात कहेवाथी प्राणीओनो वध अने अंतराय थाय छे." १
विशेषार्थ एवो छ के, कोई युवराज, धनाढ्य के गाममीओ पुरुष को वखते मुनिने पुछे के कुवो के तलाव कराववामां पुण्य छे के नहीं ? अथवा पाणीनी परव बंधाववामां पुण्य छे के नहीं ? तेना उत्तरमा बुछिमान् एटले सम्यक् प्रकारे आगमना जाण एवा मुनि " कुवो के तलाव कराववो तेमां महा पुण्य छे अने न कराववो तेमां कांइ पण पुण्य नथी, एम वे प्रकारे मुनि बोलता नथी. कारण के, जो मुनि 'पुण्य डे' एम बोले तो प्राणीनो वध थाय छे तेना शोषण समये जलने आश्रीने रहेला सेवाळ प्रमुख अनंतकायोनो तथा पूरा, शंख, मत्स्य, देमका, आदि त्रस जीवोनो प्रत्यक्ष विनाश देखावाथी अने मत्स्यादिकनुं मांहोमांहे ज
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