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________________ ३२० श्री आत्मप्रबोध. पात्रादि संपादन करवानी विधिनो जे व्यापार ते वैयावच्च कहेवाय बे. ५ स्वाध्याय. काल वेलानो परिहार करीने अथवा पोरिसीनी अपेक्षाए जे अध्ययन करवं ते स्वाध्याय कहेवाय बे. ते स्वाध्याय पांच प्रकारे बे. १ वाचना, २ पृष्ठना, ३ परावर्त्तना, ४ अनुप्रेक्षा ने ए धर्मकथा - एवा तेमना नाम बे. जे नहीं जणेला सूत्रोनुं शास्त्रोक्त विधिवमे गुरु मुखे ग्रहण करं. ते वाचना कहेवाय बे. तेमां संदेह थतां पुखं ते पृछना कहेवाय बे. ते पृष्ठना निश्चित सूत्रोनुं विस्मरण न याय तेने माटे गणवं ते परावर्तना कहेवाय . सूनी पेरे अर्थनं जे चितव, ते अनुभेक्षा कहेवाय छे अने अभ्यास करेला सूत्र ने अर्थनो बीजाने उपदेश आपको ते धर्मकथा कहेवाय जे. अहीं सूत्र बे प्रकारे बे. १ अंगप्रविष्ट अने २ अंगबाह्य तेमां बे पग, बे जंघा, वे उरु, वे गात्र, वे हाथ, एक ग्रीवा ने एक मस्तक ए बार अंगवाल पुरुष " सुअविसिहो " यी ओलखाय बे. ए प्रवचनरुप पुरुषना अंगमां जे रहेतुं ते अंगप्रविष्ट सूत्र कहेवाय बे. ते बार प्रकारे बे. आचारांग ने सूत्रकृतांग सूत्र ए प्रवचन पुरुषना बे पग बे. स्थानांग ने समवायांग - ए तेनी बे जंघा बे. जगवती ने 'ज्ञातासूत्र ते तेना बे रुबे, उपासकदशांग तथा अंतगडदशांग ते तेना पीठ तथा उदररुप बे गात्र बे, अनुतरोववादशांग अने प्रश्न व्याकरण - ए बे तेना हाथ बे, विपाक सूत्र ते ग्रीवा ने दृष्टिवाद ते मस्तक बे. या प्रमाणे प्रवचन पुरुषना ले सूत्रो बार अंग रूप बे. हवे जे अंग बाह्य आवश्यक बे, ते उपांगो, पयन्ना आदि नेदथी अनेक प्रकारनुं छे दीक्षा ग्रहण करनारने जेटले वर्षे जे सूत्रनी वाचना ग्रहण करवा योग्य होय ते स्वरूप व्यवहार सूत्र मांहेली गाथावमे दर्शावे डे. संवत्स रादि कालना अनुक्रमे करी जे जे काल प्राप्त थाय, ते ते काले धीरपुरुष वाचना लेवे ते काल या प्रमाणे बे. वर्षना दीक्षा पर्यायवालो आचारकल्प नामना अध्ययन सुधी वाचनाले बे. चार वर्षवालो सूयगकांग नामे वीजा अंग सुधी ने पांच वर्षनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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