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________________ द्वितीय प्रकाश. Ջg श्रावक रात्रि कृत्य संक्षेप. " कृत्वा षडावश्यकधर्मकृत्यं, करोति निजामुचितवण च । हृदि स्मरन् पंच नमस्कृति स, प्रायः किलाब्रह्म विवर्जयंश्च"॥१॥ "ते पनी श्रावक षमावश्यकरुप धर्मकृत्य [ प्रतिक्रमण ] करीने योग्य अवसरे निजा करे . [ ते वखते ते शुं करे ? ते कहे .] ते समय हृदयने विषे पंचपरमेष्टी नमस्कार- स्मरण करे अने प्राये करीने अब्रह्मनो परिहार करेले अने तेम करतां निज़ा करेछे. अहिं पाये करीने कयुं , तेनो हेतु एवो डे के, ऋतुकाले संतानने अर्थ तथा वेदोदय शमाववाने अर्थे तेमज पोतानी विवाहित स्त्रीने अब्रह्म सेवानो अनियम होइने अब्रह्म सेवा बनी आवे छे. तेम वली श्रावक मथुन नावमां अत्यंत लोलुप न थाय, ते पण सूचव्युं . ए रीते श्रावकना अहोरात्रना कृत्यो संक्षेपमां कहेवामां आव्या बे. हवे उपर कहेल देवपूजाना विषयमा विशेष कहेवामां आवे छे. कारण के वारंवार जिनपूजानुं विधान मोटा पुण्यना माजनुं कारण . तेने माटे कयु डे के, “वीसेस डिजणणी, सुग्गश्दाविदउकनिदरणी। दसणसुधि निमित्तं, पुणो पुणो कोरए पूआ "॥१॥ " समस्त विशेष ऋधिने नत्पन्न करनारी अने जुर्गति, दारिज तथा सुःखने दळनारी एवी जिनेश्वरनी पूजा दर्शनशुछिने माटे वारंवार कराय जे." १ हवे स्थानांग नामना त्रीजा अंगना चोथा गणामां कहेली श्रावक संबंधी चार विश्राम नूमिन देखामे जे. जेमके व्यवहारमां, जत्थणं अंसाओ अंसं साहरश १, जत्य वियणं नच्चारं पासवणं वा परिठवेश् २, सुवासकुमारावाससि वा जत्य वियणं नागकुमारावासंसि वासं नवेश ३, जत्थ वियणं आवकहाए चि . अर्थ-[१] जे अवसरे एक स्कंध नपरथी बीजा स्कंध नपर स्थापन करे, ३८ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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