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________________ द्वितीय प्रकाश. २६१ उपासक दशांग सूत्रथी जाली लेवो. व्रत ग्रहण कर्या पछी आनंद श्रावक भगवान् ने नमीने या प्रमाणे बोल्यो - " भगवन् आजथी अन्य तीथओ, अन्य तीर्थी ओना देव अन्यतीर्थीओए पोताना देव तरीके ग्रहण करेल अरिहंतनी प्रतिमा तेमने हुं वंदन करीश नहीं अने नमस्कार पण करीश नहीं; तेमणे प्रथम न बोलाव्या तो हुं तेमनी साथ आलाप तथा संलाप करीश नहीं. अर्थात् मारे हरेक कार्यने माटे तेमने बोलाववा नहीं. जो पहेलां ते बोलावे तो मारे बोलवं. तेली तेमने धर्मबुद्धिए अशनादि प्रापीश नहीं. राजान्नियोगादि छ आगा रने व बीजे सर्व ठेकाणे मारे नियम बे; आजथी हुं श्रमण निर्ग्रथोने प्रासुक तथा एषणीय आहारादिवमे प्रतिज्ञाजित करतो विचरीश आ प्रमाणे अभिग्रह व जुने त्रण प्रदक्षिणा फरी वंदन करी ते आनंद श्रावक पोताने घेर गयो हतो. तेनी स्त्री शिवानंदा पण पतिनामुखथी या प्रमाणे प्रवृत्ति सांजळी पोते प्रजुनी समीपे ावी अने तेणीए त्यां बार व्रत ग्रहण कर्या. ते पी आनंद श्रावकने चरुता जावयी पोषध उपवासादि धर्मकृत्यवमे आत्माने नाव युक्त करतां चौद वर्ष व्यतीत थइ गयां ज्यारे पंनरमा वर्षनो प्रवेश थयो एटले ते आनंद श्रावके एक दिवसे गीयार प्रतिमा (परिमा) अंगीकार करवानी इच्छाथी पोताना ज्ञातीय, स्वजन ने मित्रोने एकठा करी सरस जोजनथी तृप्त करी सत्कार कर्यो. पछी तेमनी समझ पोताना ज्येष्ठ पुत्रने कुटुंबना स्वामित्व उपर स्थापी, • सर्वनेने पुत्र पुछी पोते कोब्लाक संनिवेशमां पोतानी पोषधशालामां आव्यो. त्यां जूमिने प्रमाज, अने उच्चार तथा प्रश्रवणनी भूमिने पमीलेही दर्जना संयारा उपर ते प्रारूढ थयो. त्यां ते श्रावकनी पेहेली परिमा अंगीकार करी. तेने सूत्रोक्त विधिपूर्वक आराधी अनुक्रमे गीयार श्रावकनी पमिमा आराधी, ते पछी तपथी जेणे शरीरने सुकावी दीधुं बे एवा आनंद श्रावकने एक दिवसे निर्मल अध्यवसायथी ने ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी अवधिज्ञान उत्पन्न थइ आव्युं. तेवामां एक दिवसे ते वाणिज्य गामनी बाहेर श्री वीर प्रजु समोसर्या. त्यारे प्रजुने पुछीने इंद्रभूति ( गौतम स्वामी ) गणधर त्रीजी पोरसीमां ते वाणिज्य गाममां यथारुचि आहार ग्रहण करी गामनी बाहेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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