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________________ द्वितीय प्रकाश. २एए कथा कहेवाय बे, ते उपरथी बोजा श्रद्धालु श्रावकोए दाननी क्रियामां निर्मळ नाव धारण करवो, के थे। सर्व समृद्धि यहिं या प्रमाणे जावना बे. पोतानी मेले प्रगट थाय छे. " धन्ना ते सप्पुरिसा, जे मणसुद्धीए सुरुपत्तेसु । सुद्धा सणादाणं दिति सया सिद्धिगइहेउं " " जे मननी शुद्धिवमे सिद्धि गतिना हेतुरुप एवं शुद्ध अशनादि दान शुपाने सदा आपे छे, ते पुरुषोने धन्य छे, १" "" ॥१॥ सर्व धर्मने विषे दाननी गौणताने कडेनारायना मतनुं निराकरण करवाने गमने अनुसारे तेनुं प्राधान्य बतावे बे. (4 सर्वतीर्थकरैः पूर्व, दानं दत्वादृतं व्रतम् । तेनेदं सर्व धर्माणामाद्यं मुख्यतयोच्यते " ॥ १ ॥ "सर्व तीर्थकरोए पूर्वे दान प्रापीनेज व्रतनो आदर करेलो बे, तेथी ए दान सर्व धर्मोमां प्रधानपणे मुख्य कहेवाय ते." १ तीर्थंकरोनो दानविधि. प्रथम शक इंजनी प्रज्ञाथी धनद नामे लोकपाल आठ क्षणमां नीपजावेला, सोळ मासा प्रमाण बाला, जिनेश्वरना पिताना नामथी अंकित ने सांवत्सरिक दानने योग्य एवा सोनैयाव के जिनेश्वरना जंकारो पूरे बे. ते वखते जिनेश्वर भगवान् दाननी प्रवृत्तिने अर्थे सूर्योदय पछी उ घडीए जे महर यावे ते एटले घीपी परिपूर्ण प्रहर सुधी प्रतिदिन एक कोटी ने आठ लाख सोनैया आपे डे. आवश्यकजीने विषे कझुं छे के, एक संवत्सरमां जिनेश्वर जगवान् सो व्यास कोटी ने एंशी लाख सोनैयानुं दान आपे बे. ते दान समये उत्पन्न थता व अतिशयोः जिनेंद्र जगवान् ज्यारे सुवर्णनी मुष्टि जरीने दान आपे छे, त्यारे सौभ जगवान्ना जमणा हाथमां महा शक्ति स्थापन करे छे; के जेथी तेमना हाथने जरापण खेद उप्तन्न न थाय. अनंत वीर्यवाला भगवान्ना हाथमां इंद्र शक्तिनुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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