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________________ श्री आत्मप्रवोध. मेलवे डे, भोगनी सामग्री प्राप्त करे ने अने आ संसारनो पार पामे . "१-२ ___ वर्षाकाल अतिक्रांत थया पठ। गुरु महाराजाए वंकचूनने पुजी त्यांची विहार कॉ. वंकचून ते आचार्यनी सत्य प्रतिज्ञाथी हर्प पामतो शक्ति वमे तेमनी पाउळ गयो. केटलोक मार्ग नवघ्या पठ। चिरकान्न रहेना मुनिना वियोगथी विह्वल थयेला वंकचूने गुरुने नमन कर। प्रा प्रमाणे विनंति करते" स्वामी, अहींयी हवे वीजानो सीमामो आवे छे, तेयो हुं हवे पालो वनाश. हवे मने तमारुं पुनदर्शन तत्काल पाबु थाजो." आ प्रमाणे तेनां वचन सांजळी आचार्ये मधुर वाणीथी वंकचूनने कयुं, " हे ना, तमारी सहाय यी अो आटवो काल तमारा स्थानमा सुखे रह्या हता, तेथी जो तमोने रुचे तो तमागे प्रत्युपकार करवा माटे थोडं कां कहीए." वंकचून बांब्या-“ महाराज, ने माराथसुखे पाली शकाय, तेवां वचनो कही मार। नपर अनुग्रह कगे." वंकचूतना कहेवाथी ते आचार्य आ प्रमाणे बोव्या-" नक, १ जन नाम कोश्नायी जाणी शकाय नहीं एवां अजाण्यां फत तार खावा नहीं २ बीजाने मारवानी इच्छा थतां तमारे सात आठ पगलां पाई हवं. ६ राजानी पटराणीने माता समान गणवी.अने ४ कदि पाा कागम न मांस खा नहीं. आ चार नियमो तमारे चोकस रीते पानवा. या नियमो पानवार्थी तमारे उत्तरोत्तर मोटो लाभ थशे." आचार्यनां आ वचन सां नळी “ महाराज, आप मार) उपर मोटो अनुग्रह कर्यो " एम कही वंकबूले ते चार निधो ग्रहण कर्या. पळ। ते पोताने स्थाने पागे फर्यो अने गुरु महाराज त्यांथी विहार करी बीजे स्थने चादया गया. एक वखते वंकचून निबोनी सेना लइ कोई गाम मारवाने चाल्यो. ते गामना लोकोने अगानथ। मालूम पमवायी तेश्रो गाम मुकाने नाशी गया.वंकचून गामने खाली थयेनुं जोइ पोतानो परिश्रम निप्फन थयार्थी मनपा परिताप पामतो परिवार साथे त्यांय। पागे फो. अने अटवीमा एक वृक्ष नीचे विश्रांति लेवा बेगो. वंकचूलने क्षुधा सागवायी तेणे अटवीमांथी फलादि लाववाने पोताना माणसोने आज्ञा करी. ते लोको पण शुधाथी पीमित थता हता, एटले तेश्रो फलादि लेवाने अटवीमां आम तेम फरवा लाग्या. कोइ वन लतामां मुगंधी अने पाकेतां फलोथी नम्र थप गयेवं एक किंपाकनुं वृक तेमना जोवामां आव्युं. तत्का Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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