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णानुयोग अने कथानुयोग रुप ले. आ चारेनु स्वरूप अखिन ग्रंथना सर्वांगमां व्यापेलू जे. दरक अव्यानुयोगनी हकीकत प्रसंगे कथाओ, दृष्टांतो अने उपनयो आपी जव्यानुयोगना उत्तम पण कठिन विषयने सामान्य बुधिजनोने तृप्ति थाय तेवू बनाववामां ग्रंथकर्ताए अधिक पण उपयोगी श्रम लोधेलो ; प्रसंगे चैत्यविनय विगेरे प्रकरणोमां गणितानुयोगरुपे चैत्य संख्या विगेरे प्रतिपादन करेली ; अने देशविरति तथा सर्व विरति अधिकारमां तो खास करीने चरणकरणानुयोग अग्रपद धरावतो होवाथी चतुर्गतिना अंतरुप चारे अनुयोगोनो प्रकाश पामेलो . प्रसंगोपात्त जगवती तथा राजप्रश्नीय विगेरे सूत्रना आळावाओ सादीरुपे दर्शावेला ने, नीतिशास्त्रना श्लोको उपनय तरीके दाखल करेला छे, अने अशुचिनावनामां गर्जनुं व्यावहारिक स्वरूप पण बतावी आप्यु ; आ सर्व अंगो एकदरे तपासतां आ ग्रंथना अधिकारी मनुष्यो प्रति ग्रंथकारनी उपकार्य बुफि सादर थयेनी जे एम स्पष्ट थाय .
ग्रंथना अंतरंग शरीर परत्वे आटली हकीकतना निवेदन पछी कहेवानी आवश्यकता के के, अमारा मर्दुम पिताश्री के जेओ आ ग्रंथना भाषांतर कर्ता ने 'मर्डम पूज्यपाद श्रीमद् वृधिचंदजी महाराज पासे तेओए व्याख्यानमा आ सुंदर ग्रंथनो अमुक भाग श्रवण करतां तेनु भाषांतर करवानी इच्छा तेमना हृदयमां प्रकटी. आधी पोताना अनेक व्यवसायोमांथी पण अवकाश मेळवी, मर्डम पूज्यपाद पासे आ ग्रंथ साद्यंत वांची लीधो अने पछीथी अनुकूळताए नाषांतरनी शरुआत करी थोमा वखतमां ते पूर्ण कर्यो. त्यारपती अनेक प्रकारनी व्यवसायमय प्रवृत्तिओना उद्भवने अंगे तैयार करेलो ग्रंथ एक बाजुएज रह्यो. आ ग्रंथ उपरांत बीजी अनेक परचुरण संक्षिप्त हकीकतोनो संग्रह करेस्रो, परंतु ते अग्निनो भोग थइ परता फक्त आ ग्रंथ अन्यस्थाने होवाथी अवशेष रह्यो; केटलोक वखत वीतवा परी अमारा स्वर्गवासी पिताना निकट संबंधमां श्री जैन आत्मानंद सजाना सेक्रेटरी मो. वबभदास त्रिन्नुवनदास गांधी आवतां प्रसंगोपात्त एक वखत तेमनी साथे धर्मसंबंधी वातचीत थतां-' उक्त ग्रंथ घणोज उपयोगी छ अने जेर्नु भाषांतर अमोए कर्यु छ' एम अमारा मर्तुम पिताश्रीए उक्त सेक्रेटरीने जणाव्युं, जेथी
आवो नपयोगी ग्रंय श्री जैनात्मानंद सभा तरफथी बहार पसे तो सभाने मोडे मान प्राप्त थवा साथे जैनप्रजा तेनो लाभ सारी रीते संपादन करी शके एम उक्त सक्रेटरीने हकीकत जणाववाथी तेमणे अमारा पिताश्रीने उक्त ग्रंथर्नु भाषांतर सजा
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