________________
( १२ )
प्रकृतिनुं घातित्व, प्रघातित्व, संक्रमण अने निष्क्रमण विगेरे जेवुं सूक्ष्मतर स्वरूप य दर्शनमां वर्णवेनुं बे, तेनो आंशिक नाग पण अन्यदर्शनोमां द्रष्टिगोचर थइ शकतुं नथी; एज तावी पे बे के या सर्वमणीत दर्शन होवं जोइए; अन्यथा वा प्रकारनी अपूर्व हकीकतनो संजव कयांथी होइ शके ? जे दर्शन
परमाणुने पण कर्ता मानी अन्यनो जगत् कर्ता तरीके निरास करे छे, ते साथै आत्मा पोते कार्मण परमाणुओना वशवतीं पणाथी अनेक पदार्थों, अनेक स्थिति नानी नानी अनेक सृष्टियो सर्जवानी शक्ति धरावे छे ( पछी ते ज्ञानथी के अज्ञानथी गमे ते रीते होय ) अने पछी थी विनाश करे छे. आवी परंपराओनी मान्यतावाकुं जैनदर्शन आधुनिक प्रत्यक्ष प्रमाण मात्रने माननारी विज्ञान विद्या ( Science ) वमे शोधखोळ करायला जड स्वरूपने मळतुं आवे छे, एटलुंज नहि परंतु अरूपी पणे प्रत्यक्ष प्रमाणयी अगोचर आत्मवादने सुंदर शैली व स्थापन कर, जमवादथी थयेला एकांत अज्ञानने दूर करी, सूक्ष्मदशजनाने ' प्रदीप हस्तमतिनी' पेठे अच्छो प्रकाश आपे बे. वस्तुस्थिति या प्रकारे हो जगत्ना आत्माओ शिवाय एवा कोइ जगत्कर्तृ महात्मानी सृष्टिना पदार्थो सर्जनरूपे जरूर परुती लागती नथी, के जे वगर विश्वव्यवस्था शून्य बनी जाय ! परमाणुओ पण अनंत शक्तिवाळा निवेदन करेलाछे. आ उपरथी वास्तविक रीते ए सिद्ध थायडे के आत्मा ए अस्तित्व धरावनारी अपूर्व वस्तु छे नेते अनंत शक्तिवाळी छे.
कर्मरूप जडपरमाणुओोथी जेनो स्वभाव आच्छादित थइ गयेलो बे एवा आत्माने ते ते जमपरमाणु ने दूर करवानो आत्मज्ञान प्राप्त करवानो यथार्थ क्रम होय ने तेने अनादि मिथ्यात्वरूप घोर निद्रामांथी जागी आत्मा समजवा प्रयत्न करे ने समजी तदनुकूल आचरण करे तो इष्टसिद्धि संपादन करे युक्तियुक्त जे. ग्रंथ ' आत्मप्रबोध ' तदनुकूळ कार्यवाहकपणे योजायेलो बे; तेमां आत्मानी चार भूमिकाओ उच्च उच्च जावने अनुक्रमे वहन करनारी दर्शाव तेना उपर आरोहण करवानो वारंवार उद्बोध करवामां आवेलो . जोके जैनदर्शनमा आत्मानी चौद भूमिकाओ— ज्ञान दर्शन चारित्रना प्रकटीकरनी जुदी जुदी अवस्था प्रतिस्थाने वर्णवेनी डे, बतां ग्रंथकर्त्ताए संक्षिप्तपणे ग्रहण करी या चार भूमिकानुं निरूपण कर्यु बे.
(१) सम्यक्त्व (२) देशविशति ( ३ ) सर्वविरति ( ४ ) परमात्मजाव.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
.
www.jainelibrary.org