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श्री आत्मप्रबोध.
"प्रवचनसारोधारा-धनु सारेणैष वर्णितो मयका।। सम्यक्त्वस्य विचारो निजपरचेतः प्रसत्तिकृते ॥ २ ॥
पोताना अने बीजाना चित्तनी प्रसन्नताने माटे प्रवचन सारोकार वगेरे ग्रंथोने अनुसारे में आ सम्यक्त्वनो विचार वर्णन करेलो . ?"
इति श्री जिननक्त सूरींजना चरणकमनने विषे त्रमर तुल्य एवा श्री जिनलाल सूरिए संग्रह करेन आ आत्मबोध ग्रंथनो सम्यक्त्व निर्णय नामनो प्रथम प्रकाश समाप्त थयो.
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ति प्रथमः प्रकाशः।
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