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श्री आत्मबोध.
बे, तेवा
सार सुखने विषे हवे मारी इच्छा नयी संसारनी आधि तरफ मने संपूर्ण तिरस्कार बे, तेथी तमे मने विसंबे आज्ञा आपो; जेथी हुं संयमने अंगीकार करु.
"
दमसार कुमारनो संयमने विषे यावो नाव जोइ तेमज दृढ निश्चय जाली माता पिताए तेने संयम लेवानी आज्ञा आपी. पछी तेमणे पोताना कुमारनो दीोत्सव कर्यो. पवित्र वृत्तिवाळा दमसारे वर्द्धमान परिणामथी श्रीवीरमनु पासे आनंद पूर्वक दीक्षा लीधी पछी तेना माता पिता परिवार सहित पोताने स्थाने चाया गया हता.
राजर्षि दमसार ते पी चारित्र धर्मने यथार्थ रीते पालवा लाग्या. बन, म वगेरे तपस्या करी तेमणे कर्म निर्जरा करवा मांगी.
एक दिवसे महानुजाव दमसार मुनिए श्री वीरप्रजुनी पासे वो अि ग्रह ग्रहण कर्यो के, " हे जगवन्, हुं जावजीव सुधी मासखमण तप अंगीकार कर ने विचरीश. " वीरमनुए कहुं, “देवानुप्रिय, जेम तमने सुख उपजे तेम करो.” पछी राजर्षि दमसार मुनि ए महा तपने आचरवा लाग्या. घणा मास सुधी ए तपस्या करवाथी तेमनुं शरीर शुष्क थइ गयुं. मात्र शरीरमां हामपिंजर रहे . वखते जगवान् महावीर प्रभु चंपा नगरीमां समोसर्या हता. महात्मा दमसार मुनि तेमनी पासे यावी चड्या. एक समये ते राजर्षि मासखमाना पारणाने दिवसे पेहेली पोरिसीए स्वाध्याय ध्यान करी बीजी पोरिसीए ध्यान करतां तेमना मनमां एवो विचार उत्पन्न थयो के, आजे वीरमनुने एवो प्रश्न करवो के, हुं जव्य बुं के अनन्य बुं. चरम बुं के अचरम बुं. मने केवलज्ञान यशे के नहीं थाय ?" यावो विचार कर ते ज्यां वीरप्रभु विराजमान हता, त्यां आवी तेमने ऋण प्रदक्षिणा आपी वंदना करी आगळ बेटा. तेवामां त्रिकालदर्शी वीरमनुए कहुं, " दमसार मुनि, आजे ध्यान करतां तमोए मने पुत्रवाने माटे एवो अध्यवसाय कर्यो हतो के, हुं जव्य बुं के अजव्य, हुं चरम बुं के अचरम अने मने केवलज्ञान यशे के नहीं ?
वात सत्य डे ?” मनुना या वचनो सांजळ | दमसार मुनिए कां, “स्वामी, "ए बात सत्य बे. " पछी मनुए कहुँ, “ राजर्षि, तुं नव्य नथी पण जव्य छे. तुं
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