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________________ पारसनाथ हिल नाम से सम्बोधित करती है। यह भी उल्लेखनीय है कि इस तीर्थ को श्वेताम्बर परम्परा में सम्मेत शिखर कहा जाता है और दिगम्बर परम्परा में सम्मेद शिखर । इसका मुख्य कारण परम्परा भेद नहीं, अपितु प्राचीन भाषा के भेद का है। श्वेताम्बर परम्परा में अर्धमागधी प्राकृत प्रचलित है और दिगम्बर परम्परा में सौरसेनी। जैसा कि भाषाविद जानते हैं कि सौरसेनी प्राकृत में 'त' का 'द' प्रयोग हो जाता है इसलिए दिगम्बर परम्परा में सम्मेत को सम्मेद कहा जाता पार्श्वनाथ ढूंक : तीर्थ का सर्वोच्च शिखर शिखरजी के भोमियाजी महाराज जगविख्यात हैं । जैन धर्म में अधिष्ठायक देव के रूप में दो शक्तियां जग प्रसिद्ध हैं- राजस्थान में नाकोड़ा भैरव एवं बिहार में शिखरजी के भोमियाजी । सम्मेत शिखर के विशाल पहाड़ पर रात के बारह बजे हों या दिन के,श्रद्धालु यात्रा करते पाये जाते हैं आखिर इन सबकी रक्षा भोमियाजी महाराज ही तो करते हैं। भोमियाजी महाराज तीर्थ-रक्षा तो करते ही हैं, साथ ही भक्तों की मनोकामनाएं भी पूर्ण करते हैं। तलहटी जिसे मधुवन कहा जाता है वहाँ बाबा भोमिया का मनोहारी मंदिर एवं ओजस्वी प्रतिमा है। लोग तेल और सिन्दूर से बाबा की पूजा करते हैं और अपनी श्रद्धा बाबा के द्वार पर लुटाते हैं। प्रतिवर्ष होली के दिन बाबा के द्वार पर शिखरजी में एक भव्य मेला लगता है। नवीं सदी में आचार्य यशोदेव सूरि के प्रशिष्य श्री प्रद्युम्नसूरि ने लम्बे अर्से तक मगध देश में विहार किया था। इसी क्रम में वे सात बार सम्मेत शिखर तीर्थ भी पधारे थे। नवीं शताब्दी के प्रारम्भ में सम्मेंत शिखर धर्मान्धता का शिकार हुआ और वहाँ के सारे मंदिर ध्वस्त कर दिये गये । इसी सदी के अन्त में तीर्थ का जीर्णोद्धार हुआ। सम्राट अकबर ने सन् १५९२ में आचार्य श्री हीरविजय सूरि के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर यह पर्वत उन्हें भेंट दे दिया था। आगरा के श्री कुमारपाल सोनपाल लोढ़ा ने सन् १६७० में यहाँ जिनालयों का जीर्णोद्धार करवाया था। सन् १७५२ में दिल्ली के अठारहवें बादशाह अबु अलीखान बहादुर ने मुर्शिदाबाद के सेठ महताबराय को जगत सेठ की उपाधि से विभूषित किया तथा मधुवन कोठी, जयपार नाला, जलहरी कुंड, पारसनाथ तलहटी पहाड़ उपहार में दिया। सं. १८०९ में मुर्शीदाबाद के सेठ महताब राय जी को दिल्ली के सम्राट बादशाह अहमद शाह ने उनके कार्यों से प्रभावित होकर मधुवन कोठी, जय पारनाला, जलहरी कुंड एवं पारसनाथ पहाड़ की तलहटी की ३०१ बीघा भूमि उपहार में दी । सं. १८१२ में बादशाह अबूअलीखान बहादुर ने इस पहाड़ को कर-मुक्त घोषित किया था। सेठ महताब राय की यह प्रबल इच्छा थी कि इस पूण्य तीर्थ का जीर्णोद्धार हो । संयोगवशात् जीर्णोद्धार का कार्य प्रारम्भ होने से पूर्व ही सेठ श्री महताब राय जी का देहान्त हो गया। उनके पुत्र सेठ खुशालचन्द के नेतृत्व में सम्मेत शिखर तीर्थ का जीर्णोद्धार कार्य प्रारम्भ हुआ एवं दैविक संकेत से बीस ढूंकों के स्थान का चयन कर तीर्थ यात्रा कर रहे यात्रीगण पार्श्वनाथ ढूंक → 121
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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